SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५ ) वनराको, हाथ जोर सिरनाई ॥ ३ ॥ ५० राग-जंगला। ____ म्हाकै जिनलूरति हृदय बसो बसी ॥ टेक ॥ यद्यपि करुना रसमय तद्यपि, मोह शत्रु हनि असी असी । म्हा० ॥१॥ भामण्डल ताको अति निर्मल, नि:कलंक जिमि ससी ससी ।। म्हा ॥ २ ॥ लखत होत अति शीतल मति जिमि, सुधा जलधिमें धसी धसी।। म्हा ॥३॥ भागचन्द जिस ध्यानमंत्रसों ममता नागिन नसी नसी ॥ म्हा० ॥४॥ ५१ राग-खमाच। ज्ञानी मुनि छै ऐसे स्वामी गुनरास ॥टेका। जिनके शैलनगर मन्दिर पुनि, गिरिकन्दर सुखवास।। ज्ञानी० ॥ १॥ निःकलंक परजंक शिला पुनि, दीप मृगांक उजास ॥ ज्ञान ॥२॥ मृग किंकर करुना व. निता पुनि, शील सलिल तप ग्रास ॥ ज्ञानी ॥३॥ भागचन्द ते हैं गुरु हमरे तिनहीके हम दास ज्ञा० ५२ राग खमाच। श्रीगुरु है उपगारी ऐसे बीतराग गुनधारी वे ॥ टेक ॥ स्वानुभूति रमनी संग क्रीड़े, ज्ञानसंपदा भारी वे ॥ श्रीगुरु ॥१॥ ध्यान पिंजरामें जिन रोको
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy