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________________ [२१] ४२-राग बरवा। कब धो मिलें गुरुदेव हमारे, भर जोवन वनवास सिधारे ॥टेक॥ आतम लोन अनाकुल देवा, जाके सुमति उदै स्वयमेवा ॥१॥ परहित हेत वचन विस्तारै, सो गुरु भी मौ सरण हमारे ॥ २॥ प्रगट करें शिव मारग नीका, बरस रहो मनु मेघ अमीको ।।३।। वैरी मीत बरावर जाकै, कांचन कांच उपल सम ताकै ॥ ४ ॥ महल मसान उद्यान सरीखे, जीवन मरन बराबर दीखे ॥५॥ करुणा अङ्ग रतन त्रय धारी, नैनानंद ताहि धोक हमारी॥६॥ ४३-गग भैरूनर । चरणन से आज मोरी लागी लगन ॥ टेक ॥ हाथ कमंडल कर में पीछी, मिले गुरु निस्तारन तरन । बन में बर्से कसैं इन्द्रीनिकू, धारें करुणा रुप नगन ।। हित मित वचन धरम उपदेशै, मानो वर्ष मेघ झरन । नैनानन्द नमत है तिनकू, जो नित आतम ध्यांन मगन ।। ४४ – गगनी झंझोटी खम्माचका जिला- ठुमरी पूर्वी । हे बहनिया मेरा अङ्गना पावन भयोरी, हे दयाल गुरु आये, ॥ कृपाल गुरु आये, री बहनियां मेरा अङ्गना पावन भयोरीटेक॥ मुक्ति पंथ दरसावन हारे री, हे रतन त्रय साथ, मयूरपिच्छ हाथैरी युगत कर मंडल भयोरी ॥१॥ गमन ईर्याकर तपधारेरी, हैं विसारे मान माया, उवाएँ षट कायारी, असन म्हारे आगम भवन भयोरी ॥२॥ पांच प्रकार रतन की धारारी, विवुध चन्द गरे, हे जै जै धुनि टेरै री, सबन दग आनन्द छावन भयोरी ॥३॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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