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________________ महाचंद जैन भजनावलो । [ ३५ उदय श्रावक कुल पायो जैन धर्म चितलानी । चौरासीके दुक्ख हरन बुध महाचन्द्र कहै बानी ॥ सदादुख पावेरे ॥ ८ ॥ (४५) प्रभाती । बिपुलाचल शिखर आजि और रूप राजै ॥ टेर || आये जिन वर्द्धमान समवसरण युत महान सुरनर तियंच नि निजस्थान विराजे || बिपुला ॥ १ ॥ षट ऋतु फल फूल सबै फलिये इक काल अदाडिम अरु दाख फ ात्र पुंग ताजे ॥ विपुला० ॥ २॥ सिंह गौवत्स हेत मृषक मार्जार पेत न्योला अरु नाग केत बैर रहित छाजै ॥ विपुला० ॥ ३ ॥ सुणियो अतिशय प्रवीन श्रेणिक नृप धर्मं लीन करमे वसु द्रव्य कीन, पूजन के काजै ॥ बिपुला० ॥ ४ ॥ कीनूं बहु पुन्य जिने तप करिकैं रैन दिन पंडित महाचन्द्र तिनैं देखे महाराजै ॥ बिपुला० ॥ ५ ॥ (४६) राग द्वेष जाके नहिं मनमैं हम ऐसेक चाकरहैं || टेर ॥ जो हम ऐसेके चाकरतो कम
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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