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________________ महाचंद जैन भजनावली। [३३ आय । पंकडि वरण पृथ्वी पटकि मास्यो महाचंद्र कंसराय ॥३॥ मिथ्याती० ॥ (४३) बिबेकी जोव गुरु उपगारी मान हो ॥ टेर॥ देव स्वर्ग से आयके जी बंदे श्रीजिनराय । चारुदत्तको बंदके फिर बंदे श्रीमुनिराय ॥बिबे०॥१ मुनिसुत पूछी देवसं तुम हो अबिबेक लखाय । प्रथमहि गृहस्थि बंदिकेजी बंदे श्रीमुनिराय ॥ बिबे० ॥२॥ देव कही हमरे गुरू यह प्रथम चारुदत्त राय । कान मंत्र नवकार दियो उपगार कियो मुझ थाय ॥ बिबे०॥३॥. एकहि अक्षर देय सो गुरु जिनबाणीमें गाय । शिक्षा दे सो धर्मकी जानें, भूले पापी थाय ॥ बिबे०॥ ४ ॥ देव बचन ऐसे कहोजो समझे खग दोऊ भाय । बुध महाचंद्र न भूलिये उपगार कियो मुझथाय ॥ बिबेकी जीव०॥५॥ (४४) सदा दुख पावरे प्रानी तूतो चौरासी लख
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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