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________________ महाचंद जैन भजनावलो । [ २३ अन्नसम बहु दुख कारण खाने, जन्म जन्मान्त रारे ॥ २ ॥ शिव पथ छाड़ि नर्कपथ लाग्यो मिथ्या भर्म भुलानें, मोहकी घैल आनेरे ॥ ३ ॥ ऐसी कुमति बहुत दिन बीते अवतो समझ सयाने, कहैं बुधमहाचन्द्र छानेरे ॥ ४ ॥ 444 ( ३२ ) + ओर निहारो मोरे दीनदयाला ॥ ओर ॥ टेर || हम कर्मनतें भव भव दुखिया, तुम जग के प्रतिपाला ॥ ओर० ॥ १ ॥ कर्मन तुल्य नहीं दुखदाता, तुमसम नहिं रखवाला ॥ ओर० ॥२॥ तुमतो दान अनेक उधारे, कौन कहतैं सारा ॥ ओर० ॥ ३ ॥ कर्म अकौं बेगि हटाऊं, ऐसी कर प्रभु म्हारा ॥ ओर० ॥ ४ ॥ बुधसहाचन्द्र चरण युग चर्चे, जाचत है शिवमाला ॥ २० (३३) ओर तोर निरधारा जिनजी सच्चादेव हमारा है । ओरतोर ॥ टैर ॥ दोष अठारा रहित बिराज छियालीस गुण सारा है || ओर० ॥ १ ॥ "
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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