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________________ २२ ] महाचंद जैन भजनावली । जिनबानी, भवतारण शिव सुखकारण || जगमें टेर ॥ स्यादवादकी कथनी वाली सप्तभंगजानी सप्त तत्व निर्णय में तत्पर नव पदार्थ दानी ॥ भवतार० ॥ १ ॥ मोह तिमर अधनको जो है ज्ञान शलाकानी । मिथ्या तप तप तनको जो है मलियागर खानी ॥ भवता ॥ २ ॥ इस पंचम कलिकाल मांहि जे हैं केवली समानी | धर्म कुधर्म कुदेव देवगुरु कुगुरु बतानी || भवता० ॥३॥ इन्द्र धणेन्द्र खगेन्द्रादिक पदकी निसानी । विपयादिक विष विध्वंस करसेव सुख सुधापानी ॥ भवता० ॥ ४ ॥ कुमग गमन करता भविजनकू सुद्ध मग जितानी । जड़ पुद्गल रत बुध महाचन्द्रकू निजपर समझानी ॥ भव० ॥ ५ ॥ आन ( ३१ ) जिया तूने लाख तरह समझायो, लोभीड़ा नाही मानेरे ॥ टेर ॥ जियातें ॥ जिन करमन संग बहु दुख भोगे तिनहीसे रुचि ठानै, निज स्वरुप न जानेरे ॥ १ ॥ विषय भोग विषं सहित 2
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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