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________________ महाचंद जैन भजनावली । [ १६ मिलो भव भव हमें येही सीस महाचन्द्र नायाहो ॥ देखि जिन० ॥ ४॥ ( २६ ) जिनबाणी गंगा जन्म मरण हरणी । जन्म टेर ॥ जिन उर पदम कुंडमेंतें निकसी मुखही में गिर गिरणी ॥ जन्म० ॥ १ ॥ गौतम मुख हेम कुल पर्बत तल दरह बिचमें ढरणी || जन्म० ॥ २ ॥ स्यादवाद दोऊ तट अति दृढ़ तत्व नीर झरणी ॥ जन्म० ॥ ३ ॥ सप्तभंग मय चलत तरंगिनी तिनतैं फैल चलणी ॥ जन्म० ॥ ४ ॥ बुधमहाचन्द्र श्रवण अंजुली तैं पीवो मोक्षकर - णी || जन्म मरण ॥ ५ ॥ (२७) भाई चेतन चेत सके तो चेत अब नातर होगी खुवारीरै । भाई चेतन ॥ टेर ॥ लख चौरासीमें भ्रमता भ्रमता दुरलभ नरभव धारीरे । आयुलई तहां तुच्छ दोषतैं पंचम काल मकारी रे ॥ भाई ० ॥ १ ॥ अधिक लई तब सौ बरसन -
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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