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________________ १२] महाचंद जैन भजनावली । कुमति० ॥ ४ ॥ कुमति रची इक ग्राम कूटने रक्त कुरंगी माई | सुन्दर सुन्दर भोजन तजके गोबर भत कराई ॥ कुमति ० ||५|| राय अनेक लुटे इस मारग बरात कोन बड़ाई । बुध महाचन्द्र जानिये दुखकों कुमती द्यो छिटकाई ||६|| (१७) माड़ । ऋषभ जिन वता ये माय, अमा मोरी नग्न दिगम्बर काय ॥ ऋषभ० ॥ टेर ॥ सब नर नारि मिल देखिया ए माय, अमा मोरी नजर भेट बहू लेय ॥ ऋषभ ॥ १ ॥ कइ गज कइ अश्व देवें ये माय, अमा मोरी कइ यक कन्या देत ॥ प० ॥२॥ कइ रतन नजर करया हे माय मा मोरी केई वस्त्र अपार ॥ ऋषभ० ॥ ३॥ इत्यादिक वस्तु देव हे माय, अमा मोरी वे कछू लेते नांय ॥ ऋषभ० ॥४॥ क्या जानें क्या चाहि है ए माय, अमा मोरी धन वे कछू यन लेय ॥ ऋषभ० ॥ ५॥ ऐसे जिन मोकू मिलो ऐ माय, मा मोरी बुध महाचन्द्रके भाव ॥ ऋषभ ० ॥६॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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