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________________ श्री गोमसारजी बड़े | ३१) रुपया १०० ग्राहकों को दिया जायगा । पृष्ट संख्या ४१०० से भी अधिक होगी लब्धिसार चपणासार सहित खुले पत्रों में पद्मपुराणको साइज और बड़ े २ मोतीकी तरह सुन्दर अक्षरों में शुद्धता-पूर्वक छपाये जायगे । ६१) रुपया में मिलनेवाले से उत्तम बनाया जायगा । १०० ग्राहकोंकी स्वीकारता आनेपर छपना प्रारम्भ कर दिया जायगा अतएव शीघ्र हो ग्राहक श्रेणीमें नाम दर्ज कराइये । प्रत्येक जैनमन्दिर, पाठशाला, श्राविकाश्रम, सरस्वती भवनोंमें इसकी प्रति का रखना अत्यन्त जरूरी है । आज हो पत्र लिखें अन्यथा १०० ग्राहक हो जाने बाद दाम बढ़ जायगा । * निवेदक नृपेन्द्रकुमार जैन, मैनेजर - जि० प्र० का ० ६७४८, कलकत्ता ।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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