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________________ ( १४ ) नम गुमावै, नरभव कब मिलि जाय । हस्ती चढ़ि जो ईधन ढोवे, बुधजन कौन बसाय । अब ॥३॥ २६ राग-काफी कनड़ी। तोकौं सुख नहिं होगा लोभीड़ा ! क्यों भूल्या रे परभावनमैं ॥ तोकौं० ॥ टेक ॥ किसी भाँति कहुंका धन आवै, डोलत है इन दावनमैं ॥ तोकौं ॥१॥ व्याह करूँ सुत जस जग गावै, लग्यौ रहै या भावनमैं ॥ तोकों ॥२॥ दरब परिनमत अपनी गौतें, तू क्यो रहित उपायनमैं ॥ तोकौं ॥३॥ सुख तो है सन्तोष करनमैं, नाहीं चाह बढ़ावनमैं ॥ तोकौं ॥४॥ के सुख है बुधजनको संगति, के सुख शिवपद पावनमैं ॥ तोकौं ॥ ५ ॥ ३० राग-कनड़ी। · निरखे नाभिकुमारजी, मेरे नैन सफल भये। निर ॥ टेक ॥ नये नये वर मंगल आये, पाई निज रिधि सार ॥ निरखे ॥ १॥ रूप निहारन कारन हरिने, कीनी आंख हजार । वैरागी मुनिवर हू लखिकै, ल्यावत हरष अपार ॥ निरखे ॥ २ ॥ भरम गयो तत्वारथ पायो, आवत ही दरबार । बुधजन
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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