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________________ बुधजन विलास ५३ शुद्ध पिचकारी, छिरकन निज मति दोरी । सजनी ० || गाय रिझाय आप वश करिकै, जावन द्यौं नहि पोरी । बुधजन रचि मचिरहूं. निरंतर, शक्ति अपूरब मोरी || सजनी ० |४| (६७) राग - सोरठ । • हमको कछू भय ना रे, जान लियौ संसार | हमकौं० ॥ टेक ॥ जो निगोद मैं सो ही मुझ मैं, सोही मोखमँझार | निश्चय भेद कछू भी नाहीं भेद गिनै संसार ॥ हमकौं |१| परवश है आपा विसारिकै, राग दोषकौं धार । जीवत मरत अनादि कालते, यही है उरभार ॥ हमकौं | २ ॥ जाकरि जैसैं जाहि समयमैं, जो होतब जा द्वार । सो बनिहै रिहै कछु नाहीं, करि लीनों निरधार || इमकौं ० || ३ || अगनि जरावै पानी बोवै, विरत मिलत पार । सो पुगल रूपी में बुधजन सबक जाननहार ॥ हमक• ॥ ४ ॥ (६८) राग - सोरठ । या तौ बधाई हो नाभिद्वार ॥ ज० ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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