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________________ ४६ वुधजन विलास (८६) राग-सोरठ। भोगांरा लोभीड़ा, नरभव खोयो रे अजान भोगांरा० ॥ टेक ॥ धर्मकाजको कारन थौ यौ, सो भूल्यौ तू बान । हिंसा अनृत परतिय चोरी, सेवत निजकरि जान ॥ भोगांरा० ॥१॥ इन्द्रीसुखमैं मगन हुवौ तू, परकौं अातम मान । बंध नवीन पड़े छै यातें, होवत मौटी हान॥ भोगांरा०।२। गयौ न कछु जो चेतौ बुधजन, पावा अविचल थान । तन है जड़ तू दृष्टा ज्ञाता कर लै यौं सरधान ॥ भोगांरा० ॥३॥ (६०) म्हारी कौन सुने, थे तौ सुनिल्यो श्रीजिनराज ॥ म्हारी० ॥ टेक ॥ और सरब मतलवके गाहक,म्हारौ सरत न काज । मोसे दीन अनाथ रंकको, तुमतें बनत इलाज ॥ म्हारी ॥ १ ॥ निजपर नेकु दिखावत नाही, मिथ्या तिमिर समाज । चंदप्रभू परकाश करौ उर, पाऊं धाम निजाज ॥ म्हारी० ॥२॥ थकित भयौ है गति
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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