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________________ ४८ बुधजन विलास श्रान-पान लखि प्रान भगे तुम, परनति करि लई भान ज्ञान० ॥।' निपट कठिन मानुष ___ भव पायौ, और मिले गुनवान। अब बुधनन जिनमतको धारौ, कारे पापा परिवार ज्ञा. (८७) राग-केदागे एकतालो। अहो मेरी तुममौं बनती, सब देशनि के देव • अहो०॥टफा य दूरानजुन तुम नि दूषन जग. तहितू स्वयमेव । अहा०॥१॥ गति अनेकने अनि दुव प.यो, लीने जम अली । हामंकट हर दे बुमन सकौं, भाभा तुम पद सेव ॥ अहो० ॥२॥ (८८) राग-केदारो। याही मानौं निश्च र मानौं तुम बिन और न मानों याही० टंक । अवलौं गति गति, दुख पायौ, नाहि लायों सरधानों ॥याही० ॥ दुष्ट मतावत कर्मनिरंतर कमें कृपा इन्हें भानों भक्ति तिहारी भत्र भा पाऊं, जौलो लहों शिक्ष__ थानौं। याही ।।२।।।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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