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________________ ( १२ ) २४ राग-- धनासरी धीमो तितालो । प्रभु, थांसू अरज हमारी हो || प्रभु || टेक मेरे हितू न कोऊ जगत मैं, तुम ही हो हितकारी हो ॥ प्रभु ॥१॥ संग लग्यौ मोहि नेक न छोड़े, देत महा दुख भारी । भववनमाहिं नचावत मोकौं तुम जानत हौ सारी || प्रभु ||२|| थांकी महिमा अगम अगोचर, कहि न सकै बुधि म्हारी । हाथ जोरकै पाय परत हूं, आवागमन निवारी हो । प्रभु० ॥ ३ ॥ २५ याद प्यारी हो, म्हानें थाँकी याद प्यारी | हो म्हाने || टेक ॥ मात तात अपने स्वारथके, तुम हितु परउपगारी ॥ हो म्हानें ॥ १ ॥ नगन छबी सुन्दरता जाएँ, कोटि काम दुति वारी । जन्म जन्म अवलोकौं निशिदिन, बुधजन जा वलिहारी ॥ हो म्हनें ॥ २ ॥ २६ राग गौड़ी ताल । अरे हाँ रे तैं तो सुधरी बहुत विगारी ॥ अरे ॥ टेक ॥ ये गति मुक्ति महलकी पौरी, पाय रहत क्यौं पिछारी ॥ अरे || १ || परकौं जानि मानि
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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