SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ AN बुधजन विलास चेतन०॥३॥खोटे भेष धरै डोलत है, दख पावै बुधि भोरी । बुधजन अपना भेष सुधारो, ज्यों विलसो शिवगोरी ॥ चेतन०॥४॥ ४१ राग-आसावरी जोगिधा जल्ल तेतालो। हे श्रातमा ! देखी दुति तोरी रे ॥ हे अात. मा०॥ टेक ॥ निजको ज्ञात लोकको ज्ञाता, शक्ति नहीं थोरी रे ॥ हे प्रातमा० ॥१॥ जैसी जोति सिद्ध जिनवर, तैसी ही मोरी रे ॥ हे यातमा० ॥२॥ जड़ नहिं हुवा फिर जड़केवमि, के जड़की जोरी रे ।। हे प्रातमा०॥३॥जगके कानि करन जग टहलै, बुधजन मति भोरी रे॥ है श्रातमा० ॥४॥ (४२) बाबा! मैं न काहूकाकोई नहीं मेरा रे॥ बाबा०॥ टेक ॥ सुर नर नारक तिरयक गतिमें मोकों करमन घेरा रे ॥ बाबा० १॥ मात पिता सुत तिय कुल परिजन,मोह गहल उरझंगरे। तन धन वसन भवन जड़ न्यारे, हूं चिन्मूरति
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy