SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ बुधजन विलास . काल रे ॥ भाग० ॥ टेक ॥ ह्यां तो तेने पोल मचाई, व्हां तो होय समाल रे ॥ भाग० ११ झूठ कपट करि जीव सताये, हग्या पराया माल रे। सम्पतिसैनी धाप्या नाही, तकी विरानी वाल रे ॥ श्रागैं० ॥ २६॥ सदा भोगमैं मगन रह्या तू .लरूप नहीं निज हाल रे। सुमरन दान किया नाहि भाई, हो जासी पैमाल रे॥ अ.ग. ॥३॥ जोवन में जुक्ती संग भल्गा, भूल्या जब था बाल रे । अब हूं धारा बुधजन समता, सदारहह खुश हाल रे ॥ प्रांग: ।४। ४. राग-आसागरी जोगियो जलद् तेनालो। चेतन, खेल सुमतिसंग हारी ।। चनन टेक तोरे श्रानकी प्रीति सयाने, भली वती या जौरी वेतन ॥१॥ डगर डगर डोले है यौँ हो, श्राव श्रापनी पौरी निज रस फगुभाक्या नहिं बांटा नानर रूगरी तारी॥ चेतनः॥२॥बार कलाय त्यागि या गहि लै, समाहित केसर लोरी । मिथ्या पाथर डारि धारि लै, निज़ गुलालको झोरी ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy