SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३० ) अमनोज्ञे च मनोज्ञे सजीव द्रव्ये अजीवद्रव्ये च । न करोति रागद्वेषौ पञ्चेन्द्रिय संवरो भणितः ।। अर्थ- अमनोश अर्थात अप्रिय और मनोश अर्थात प्रिय एसे सजीव पदार्थ स्त्री पुत्रादिक तथा अजीव पदार्थ भोजन वस्त्र भूषण आदिक में रागद्वेष न करना पञ्चेन्द्रिय सम्बर है। अर्थात इन्द्रियों के विषय भागों में रागद्वेष न करना इन्द्रिय सम्बर है। हिंसा विरइ अहिंसा असञ्च विरइ अदत्त विरई य । तुरीयं अवंभविरई पंचम संगम्मि विरई य ॥३०॥ हिंसाविरतिरहिंसा असत्यविरतिरदत्त विरतिश्च । तुरीयमब्रह्मविरतिः पञ्चमं सगे विरतिश्च ।। अर्थ-महावत ५ हैं । अहिंसा महाव्रत अर्थात हिंसा का त्याग१ सत्यमहाव्रत अर्थात अमत्य का त्याग २ अचार्य महावत अर्थात बिना दी हुवी वस्तु का नलेना३ ब्रह्मचर्य महावन ४ और परिग्रह त्याग महाव्रत ५। साहति जे महल्ला आयग्यिं जं महल्ल पुव्वेहिं । जं च पहल्लाणि तदो महल्लयाइ तहेयाइ ॥३१॥ साधयन्ति यद् महान्तः आचरित यद् महद्भिः पूर्वः । यानि च महान्ति ततः महाव्रतानि ॥ अर्थ- जिन को बड़े पुरुष साधन करते हैं और जिन को पहले महत्पुरुषों ने आचरण किया है और जो स्वयं महान् हैं इससे इनको महाव्रत कहते हैं। वयगुत्ति मणगुत्ति इरिया समदि सुदाणणिक्खेवो । अवलोय भोयणाएहिंसाए भावणा होति ॥३२॥ बचोगुप्तिः मनोगुप्तिः ईर्यासमितिः सुदाननिक्षेपः । अवलोक्य भोजनं अहिंसाया मावना भवन्ति ।।
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy