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________________ यादाटम ॥११॥ कहते है, और विजातीय पदार्थोंसे जो सर्वथा जुदापना है, उसको व्यतिवृत्ति (विशेप) कहते हैं। मिले हुए इन दोनोंको भी जो धारण y करें, वे अनुवृतिव्यत्तिवृत्तिभाज है । अर्थात् सामान्य तथा विशेष इन दोनों स्वरूप है। अस्यैवार्थस्य व्यतिरेकमाह । न भावान्तरनेयरूपा इति ।नेति निषेधे । भावान्तराभ्यां पराभिमताभ्यां द्रव्यगुणकर्मसमवायभ्यः पदार्थान्तराभ्यां भावव्यतिरिक्तसामान्यविशेषाभ्यां नेयं प्रतीतिविषयं प्रापणीयं रूपं यथासंख्यमनुवृत्तिव्यतिवृत्तिलक्षणं स्वरूपं येषां ते तथोक्ताः । स्वभाव एव ह्ययं सर्वभावानां यदनुवृत्तिव्यावृत्तिप्रत्ययौ स्वत एव जनयन्ति। तथा हि घट एव तावत्पृथुबुनोदराद्याकारवान् प्रतीतिविषयीभवन् सन्नन्यानपि तदाकृतिभृतः | पदार्थान् घटरूपतया घटैकशब्दवाच्यतया च प्रत्याययन् सामान्याख्यां लभते । स एव चेतरेभ्यः सजातीयविजातीयेभ्यो द्रव्यक्षेत्रकालभावैरात्मानं व्यावर्तयन् विशेषव्यपदेशमनुते । इति न सामान्यविशेषयोः पृथक्पदार्थान्तरत्वकल्पनं न्याय्यम् । पदार्थधर्मत्वेनैव तयोः प्रतीयमानत्वात् । न च धर्मा धमिणः सकाशादत्यन्तं व्यतिरिक्ताः। एकान्तभेदे विशेपणविशेष्यभावाऽनुपपत्तेः। करभरासभयोरिवधर्माधमिव्यपदेशाऽभावप्रसङ्गाच्च। धर्माणामपि च पृथक्पदार्थान्तरत्वकल्पने एकस्मिन्नेव वस्तुनि पदार्थानन्त्यप्रसङ्गः । अनन्तधर्मकत्वाद्वस्तुनः। | अब इसी अर्थके व्यतिरेकका कथन करते है । 'न भावान्तरनेयरूपाः' [यहां 'न' निषेध अर्थमें है ] पदार्थ वैशेपिकोंके माने हुए जो द्रव्य, गुण, कर्म और समवाय नामक पदार्थ है, उनसे भिन्न जो सामान्य तथा विशेष है, उन करके नेय अर्थात् प्रतीतिके 1 गोचर करने योग्य है खरूप जिनका, ऐसे नहीं है। क्योंकि सब पदार्थोका यह खभाव ही है कि, वे अनुवृत्ति और व्यतिवृत्ति प्रत्ययको पू स्वयं ही उत्पन्न करते है। सो ही दिखलाते है कि, जैसे पृथु ( मोटे) और बुध्न ( गोल ) ऐसे उदर (पेट ) आदिके आकारको Yधारण करनेवाला घडा जब प्रथम ही प्रतीत होता है, तब अपने जैसे आकारको धारण करनेवाले जो अन्य ( दूसरे) पदार्थ है, उनको भी घट रूपतासे और 'घट' इस एकशब्दवाच्यतासे विदित करता हुआ 'सामान्य ' इस नामको धारण करता है। और वही घडा अपनी जातिवाले जो दूसरे घट है, उनसे तथा अपनी जातिसे भिन्न जो पट आदि है, उनसे द्रव्य, क्षेत्र, काल १ उच्चारण । २ अनिष्टापादनं प्रसङ्ग।
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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