SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थाद्वादम. ॥११६॥ - यौगमतवाले ऐसा कहते हैं कि अभावको पदार्थसे सर्वथा जुदा माननेसे ही यदि प्रत्येक पदार्थकी जुदाई सिद्ध होती है तो ५ उस पदार्थको ही असरूप कल्पना करनेसे क्या प्रयोजन है ? परंतु यह कहना सर्वथा दूषित है। क्योंकि जब प्रत्येक पदार्थका अभाव तो जुदा और पदार्थ जुदा ही है इसलिये कोई भी पदार्थ अपनेसे भिन्न वस्तुओंके अभावरूप तो है ही नहीं तो फिर घड़ा भी वस्त्रादिक अन्य वस्तुरूप हो जाना चाहिये । और जैसे घटाभावसे घट भिन्न है इसलिये घट घटखरूप है। तैसे वस्त्रादिक भी घटाभावसे भिन्न हैं इसलिये वे भी घटवरूप क्यों न हों ? भावार्थ-योगमतमें प्रत्येक पदार्थकी स्थिति Gउसके अभावसे जुदे होनेकी अपेक्षा मानी है। जैसे घड़ाका अभाव एक जुदा पदार्थ है। वह जहां नहीं होता है वहां ही घड़ा है ऐसा निश्चय योगमतमें माना गया है। परंतु इसमें दोष इस प्रकार आता है कि वस्त्रादिक पदार्थ भी घड़ाके अभावरूप नही है इसलिये वस्त्रादिक भी घड़ाके अभावसे भिन्न होनेसे घड़ारूप क्यों नही होजाते है ? क्योंकि, वस्त्रादिकोंमें ऐसा कोई भी प्रबल रोकनेवाला धर्म नहीं है जो घड़ारूप होनेसे रोक सके। हमारे यहां तो घडाके अतिरिक्त सभी पदार्थों के अभावस्वरूप उस घड़ाको माना है । इसलिये हमारे यहां तो वह घड़ा जब वस्त्रादिकोंके अभावखरूप है तो बस्त्रादिखरूप कैसे हो सकता है? क्योंकि, जो | जिसके अभावखरूप है वह उसके आकाररूप नहीं हो सकता है। इतना खण्डन ही वश है। एवं वाचकमपि शब्दरूपं द्वयात्मकम् । एकात्मकमपि सदनेकमित्यर्थः, अर्थोक्तन्यायेन शब्दस्यापि भावाभावात्मकत्वादऽथ वा एकविषयस्यापि वाचकस्यानेकविषयत्वोपपत्तेः। यथा किल घटशब्दः संकेतवशात् पृथुबुनोदराद्याकारवति पदार्थे प्रवर्तते वाचकतया तथा देशकालाद्यपेक्षया तशादेव पदार्थान्तरेष्वपि तथा वर्तमानः केन वार्यते ? भवन्ति हि वक्तारो योगिनः शरीरं प्रति घट इति; संकेतानां पुरुषेच्छाधीनतयाऽनियतत्वात् । यथा चौरशब्दोऽन्यत्र तस्करे रूढोपि दाक्षिणात्यानामोदने प्रसिद्धः । यथा च कुमारशब्दः पूर्वदेशेऽश्विनमासे रूढः । एवं कर्कटीशब्दादयोपि तत्तद्देशापेक्षया योन्यादिवाचका ज्ञेयाः। ___ इसी प्रकार पदार्थोके अर्थका कहनेवाला शब्द भी दोनो प्रकार है । अर्थात्-कथचित् एकखरूप है, कथचित् अनेकखरूप है। ) क्योंकि, जैसे पदार्थ भावाभावात्मक सिद्ध किया है तैसे ही शब्द भी भावाभावात्मक है। अथवा एक विषयका वाचक भी | शब्द अनेक विषयका वाचक होसकता है इसलिये भी शब्द भावाभावात्मक है। जैसे एक घड़ा सकेतके वशसे स्थूल तथा लवे ॥११६॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy