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________________ प्रस्तावना प्रायः गाथाएँ छोड़ी गई हैं, शेष सब गाथाओंको, जिनमें मंगलाचरण और अन्तकी गाथाएँ /भी शामिल हैं, ग्रंथका अंग बनाया गया है और कहीं-कहीं उनमें कुछ क्रमभेद भी किया गया है। यहाँ मैं इस विषयका कुछ विशेष परिचय अपने पाठकोंको दे देना चाहता हूँ, जिससे उन्हें इस ग्रंथकी संग्रह-प्रकृतिका कुछ विशेष बोध हो सके : रायचद्र-जैनशास्त्रमाला संवत् १९६६ के संस्करणमें इस अधिकारकी गाथासंख्या ३५८ से ३६७ तक ४० दी है, जबकि आराकी उक्त ग्रंथ-प्रतिमें वह ४८ या ४६ पाई जाती है। आठ गाथाएं जो उसमें अधिक हैं अथवा गोम्मटसारमे जिन्हें छोड़ा गया है वे निम्न प्रकार हैं। गोम्मटसारकी जिस गाथाके बाद वे उक्त ग्रंथ-प्रतिमें उपलब्ध हैं उसका नम्बर शुरूमे कोष्टकके भीतर दे दिया गया है :(३६०) घाई तियउज्जोवं थावर वियलं च ताव एइंदी। णिरय-तिरिक्ख दु सुहुमं साहरणे होइ तेसट्ठी ॥ ४ ॥ (३६४) णिरयादिसु भुज्जेगं बंधुदगं बारिवारि दोरणेत्थ पुणरुत्तसमविहीणा आउगभंगा हु पज्जेव ॥३॥ णिरयतिरयाणु णेरइ पणहाउ(१) तिरियमणुयाऊ य तेरिच्छिय-देवाऊ माणुस-देवाउ एगेगे ॥ १० ॥ (३७५) वध(बद्ध)देवाउगुवसमसद्दिठी वंधिऊण आहा। सो चेव सासणे जादो तरिसं पुण बंध एक्को दु ॥ २२ ॥ तस्से वा बंधाउगठाणे भगा दु भुज्जमाणम्मि । मणुवाउम्मि एक्को देवेसुववणगे (?) विदियो ॥२३॥ । (३७६) मणुवणिरयाउगे णरसुराये (?) णिरागबंधम्मि । तिरयाऊण तिगिदरे मिच्छव्वणम्मि (?) भुज्जमणुसाऊ ॥२८॥ (३८०) पुन्छ त्तपणपणाउगभगा बंधस्स भुज्जमणुसाऊ । अण्णतियाऊसहिया तिगतिगचउणिरयतिरियाऊण ॥ ३० ॥ (३६०) विदियं तेरसबारमठाणं पुणरुत्तमिदि विहाय पुणो । दुसु सादेदरपयडी परियणदो दुगदुगा भंगा ॥४१॥ उक्त ग्रन्थप्रतिकी गाथाएं न० १५, १६, १७ गोम्मटसारमें क्रमशः नं० ३६८, ३६६, ३७० पर पाई जाती है; परन्तु गाथा न० १४ को ३७१ नम्बरपर दिया है, और इस तरह गोम्मटसारमे क्रमभेद किया गया है। इसी तरह २५, २६, नं० की गाथाओंको भी क्रमभेद करके नं० ३७८, ३७७ पर दिया है। J१ अन्तकी दो गाथाएँ वे ही हैं जिनमेंसे एकमें इन्द्रनन्दीसे सकल-सिद्धान्तको सुनकर कनकनन्दीके द्वारा सत्वस्थानके रचे जानेका उल्लेख है और दूसरी 'जह चक्केण य चक्की' नामकी वह गाथा है जिसमें चक्री की तरह षट्खण्ड साधनेकी बात है और जिससे कनकनन्दीका भी 'सिद्धातचक्रवर्ती' होना पाया जाता है-श्राराकी उक्त प्रतिमें अन्यको 'श्रीकनकनन्दि-सैद्धान्तचक्रवर्तिकृत' लिखा भी है । ये दो! गाथाए कर्मकाण्डकी गाथा न० ३६६ तथा ३६७ के रूपमें पीछे उद्धृत की जा चुकी हैं। सख्याङ्क ४६ दिये हैं परन्तु गाथाए ४८ हैं इससे या तो एक गांथा यहाँ छूट गई है और या सख्याक गलत पड़े हैं । हो सकता है कि गिरयाऊ-तिरियाऊ' नामको वह गाथा ही यहाँ छूट गई हो जो श्रागे उल्लेखित एक दूसरी प्रतिमें पाई जाती है।
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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