SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ पुरातन-जैनवाक्य-सूची विसएहिं से ण कर्ज भ० श्रारा० २१५४ विससाणसाणखुरिसुणि- आय० ति० १-१६ विसकोट्ठा(वसहेट्ठा) कामधरा तिलो०प०८-६२१ | विसाहणामो पढमो सुदख० ७३ विसजंतकूडपंजर-* पचस० १-११८ विसुद्धलेस्साहिं सुराउबंधं तिलो. प० ३-२४२ विसजंतकूडपजर- * गो० जी० ३०२ / विस्समिदो तद्दिवसं मूला० १६५ विसमपय-वमिद-णिहद- छेदपिं० ६३ | विस्साणं लोयाणं तिलो० ५० १-२४ विसयकसाएहिं जुदो मोक्खपा० ४६ / विस्सासकरं रूवं भ० श्रारा० ८४ विसयकसाओगाढो पवयणसा० २-६६ | विहगाहिवमारूढो तिलो० ५० ५-६४ विसयकसाय चएवि वढ पाहु० दो० १६८ | विहडावइ ण हु संघडइ सावय० दो० १५१ विसयकसाय वसपणिवहु सावय० दो० १४४ / विहयहिपा य पंचास- श्राय. ति०४-३ विसयकसायविणिग्गह- वा० अणु० ७७ | विहरदि जाव जिणिंदो दसणपा० ३५ विसयकसाय वि णिहलिवि परम०प०२-११२ | विहलो जो वाचारो कत्ति० अणु ३४६ विसयकसाय: रंजियउ पाहु० दो० २०१ | विहिणा गहिऊण विहिं। वसु० सा० ३६३ विसय-कसायहि मण-सलिलु परम० प० २-१५६ । विहिं तिहिं चहुहिं पंचहिं पसं० १-८६ विसय-कसायहिं रंगियहिं परम० ५० १-६२ | | विजणसुद्धं सुत्तं मूला० २५५ विसयकसायासत्ता तिलो० ५० ४-६२२ / वितरणिलयतियाणि य तिलो० सा० २६४ विसयमहापंकाउल- भ० श्रारा० १४६७ | वि(वि)ति परे एदेसु व छेदपिं० २२० विसयम्मि तम्मि मज्झे जबू० ५० ६-६७ | विदफलं संमेलिय तिलो० ५० १-२०२ विसयवणरमणलोला भ० श्रारा० १४१२ विंदावलिलोगाणमसंखं । गो० जी० २०६ विसयविरत्तो मुंचइ रयणसा० १३४ तिलो०प०१-१७३ विसयविरत्तो समणो भावपा० ७७ |विंसदिजमगणगा पुण जबू० ५० १३-१४७ विसयसमुदं जोव्वण- भ० श्रारा० १११६ / विंसदि परिहारे संढित्थी- श्रास० ति०५१ विसय-सुहइँ बे दिवहडा x परम० ५० २-१३८ । वीणावेणुझुणीओ तिलो० प०८-५६१ विसयसुहं सेविज्जइ प्राय० ति० ११-१ | वीणावेणुप्पमुह तिलो० प०८-२५६ विसय-सुहा दुइ दिवहडा x पाहु० दो० १७ | वीयणसयलुट्ठ(द्धी)ए तिलो० सा० ४४२ विसयह उप्परि परममुणि परम० प० २-५० वीरजिणतित्थकालो तिलो. सा० ८१२ विसया चिंति म जीव तुहुँ पाहु० दो० २०० । वीरजिणे सिद्धिगदे तिलो० प० ४-१४६४ विसयाडवीए उम्मग- भ० श्रारा० १८६१ वीरमदीए सूलगद भ० श्रारा० १५१ विसयाडवीए मज्झे भ० श्रारा० १२६२ | वीरमहकमलणिग्गय- गो० जी० ७२७ विसयाणं विसईणं अगप० २-६१ वीरंगजा भधाणो तिलो. प० ४-१५१६ विसयाणं विसईण गो० जी० ३०७ वीरं विसयविरत्तं* णयच०१ विसयामिसारगाढं भ० श्रारा० १७६१ वीरं विसयविर * दव्वस० णय० ३६५ विसयामिसेहिं पुण्णो तिलो० प० ४-६३२ वीरं विसालणयणं सीलपा०१ विसयालंबणरहिरो आरा० सा०६७ वीरासणमादीयं भ० श्रारा० २०१० विसयासत्तउ जीव तुहु परम० प० २-१४१ वीरासणं च दंडा भ० श्रारा० २२५ विसयासत्तो विमदी तिलो० ५० २-२६७ | वीरियजुदमदिखउवस गो० जी० १३० विसयासत्तो वि सया कत्ति० अणु० ३१४ | वीरियमणंतरायं भ० श्रारा० २१०६ विसया सेवइ जो वि परु पाहु० दो०१६४ | वीरिंदणंदिवच्छे लद्धिसा० ६४८ विसया सेवहि जीव तुहुँ पाहु० दो० १२० | वीरो जरमरणरिवू विसवेयणरत्तक्खय-+ गो० क० ५७ | वीवाहजादगादिसु विसवेयणरत्तक्खय-+ भावपा० २५ | वीवाहजादगादिसु प्राय०ति० २३-६ मूला० १०६ श्राय० ति० ३-१०
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy