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________________ प्रस्तावना २३ तारा ही यह नामकरण किया गया हो-टीकासे पूर्वके उपलब्ध साहित्यमें ग्रंथकाररूपमे इस नामकी उपलब्धि भी नहीं होती।) 'काहेण जो ण तप्पदि इत्यादि गाथा नं० ३६४ की टीकामें निर्मल क्षमाको उदाहृत करते हुए घोर उपसर्गो को सहन करनेवाले सन्तजनोंके कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, जिनमे एक उदाहरण कार्तिकेय मुनिका भी निम्नप्रकार है: ___ "स्वामिकार्तिकेयमुनि-कौंचराज-कृतोपसर्ग सोढ्वा साम्यपरिणामेन समाधिमरणेन देवलोकं प्राप्यः (सः)।" इसमें लिखा है कि 'स्वामिकार्तिकेय मुनि क्रौंचराजकृत उपसर्गको समभावसे सह कर समाधिपूर्वक मरणके द्वारा देवलोकको प्राप्त हुए ।' तत्त्वार्थराजवार्तिकादि ग्रंथोंमे 'अनुत्तरोपपाददशांग' का वर्णन करते हुए, वर्द्धमान तीर्थकरके तीर्थमे दारुण उपसर्गों को सहकर विजयादिक अनुत्तर विमानों (देवलोक) मे उत्पन्न होनेवाले दस अनगार साधुओं के नाम दिये हैं उनमे कार्तिक अथवा कार्तिकेयका भी एक नाम है, परन्तु किसके द्वारा वे उपसर्गको प्राप्त हुए ऐसा कुछ उल्लेख साथमें नहीं है। (हॉ, भगवती भागधना-जैसे प्राचीन ग्रंथकी निम्न गाथा नं० १५४६ मे क्रौंचके द्वारा उपसर्गको प्राप्त हुए एक व्यक्तिका उल्लेख जरूर है--साथमें उपसर्गस्थान 'रोहेडक' और शक्ति' हथियारका भी उल्लेख है-परन्तु 'कार्तिकेय नामका स्पष्ट उल्लेख नहीं है । उस व्यक्तिको मात्र 'अग्निदयितः' लिखा है, जिसका अर्थ होता है अग्निप्रिय, अग्निका प्रेमी अथवा अग्निका प्यारा-प्रेमपात्र) : रोहेडयम्मि सत्तीए हो कौंचेण अग्गिदयिदो वि । तं वेदणमधियासिय पडिवण्णा उत्तयं अहूँ ॥ 'मूलाराधनादर्पण' टीकामे पं० आशाघरजीने 'अग्गिदयिदो' (अग्निदयितः) पदका अर्थ, 'अग्निराजनाम्नो राज्ञः पुत्रः कार्तिकेयसंज्ञ-अग्निनामके राजाका पुत्र कार्तिकेयसंज्ञक -दिया है। कार्तिकेय मुनिकी एक कथा भी हरिषेण, श्रीचन्द्र और नेमिदत्त के कथाकोषोंमें पाई जाती है और उसमें कार्तिकेयकी कृतिका मातासे उत्पन्न अग्निराजाका पुत्र बतलाया है। साथ ही, यह भी लिखा है कि कार्तिकेयने राजकालमें-कुमारावस्थामे-ही मुनिदीक्षा ली थी, जिसका अमुक कारण था, और कार्तिकेयकी बहन रोहेटक नगरके उस क्रौंच राजा को व्याही थी जिसकी शक्तिसे आहत होकर अथवा जिसके किये हुए दारुणे उपसर्गको जीतकर कार्तिकेय देवलोक सिधारे हैं। इस कथाके पात्र कार्तिकेय और भगवती आराधना की उक्त गाथाके पात्र 'अग्निदयित' को एक बतलाकर यह कहा जाता है और आमतौरपर माना जाता है कि यह कार्तिकेयानुप्रेक्षा उन्हीं स्वामी कार्तिकेयकी बनाई हुई है जोक्रौंचराजा के उपसर्गको समभावसे सहकर देवलोक पधारे थे, और इसलिये इस ग्रंथका रचनाकाल भगवती आराधना तथा श्रीकुन्दकुन्दके ग्रंथोंसे भी पहलेका है भले ही इस ग्रंथ तथा भ० आराधनाकी उक्त गाथामे कार्तिकेयका स्पष्ट नामोल्लेख न हो और न कथामें इनकी इस ग्रंथरचनाका ही कोई उल्लेख हो। परन्तु डाक्टर ए० एन० उपाध्ये एम० ए० कोल्हापुर इस मतसे सहमत नहीं हैं। यद्यपि वे अभी तक इस ग्रंथके कर्ता और उसके निर्माणकालके सम्बन्धमें अपना कोई निश्चित एकमत स्थिर नहीं कर सके फिर भी उनका इतना कहना स्पष्ट है कि यह ग्रंथ उतना
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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