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________________ प्रस्तावना १७ का भी उल्लेख किया गया है और उनकी तथा निर्वाणभूमियोकी भी वन्दना की गई है। इस भक्तिपाठपरसे कितनी ही ऐतिहासिक तथा पौराणिक बातो एवं अनुश्र तियोंकी जानकारी होती है, और इस दृष्टिसे यह पाठ अपना खास महत्त्व रखता है। २१.पंचगुरु(परमेष्ठि)भक्ति-इसकी पद्यसंख्या ७(६) है। इसके प्रारम्भिक पाँच पद्योमे क्रमशः अर्हत् , सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ऐसे पॉच गुरुवों-परमेष्ठियोका स्तोत्र है, छठे पद्यमे स्तोत्रका फल दिया है और ये छहों पद्य सृग्विणी छंदमे हैं । अन्तका ७ वॉ पद्य गाथा है, जिसमे अहंदादि पंच परमेष्ठियोके नाम देकर और उन्हें पंचनमस्कार (णमोकारमंत्र) के अगभूत बतलाकर उनसे भवभवमे सुखकी प्रार्थना की गई है । यह गाथा प्रक्षिप्त जान पड़ती है। इस भक्तिपर प्रभाचन्द्रकी संस्कृत टीका नहीं है। २२. थोस्सामि थुदि—(तीर्थकरभक्ति)-यह 'थोस्सामि पदसे प्रारंभ होनेवाली अष्टगाथात्मक स्तुति है, जिसे 'तित्थयरभत्ति' (तीर्थकरभक्ति) भी कहते हैं । इसमे वृषभादि-वर्द्धमान-पर्यन्त चतुर्विंशति तीर्थंकरोंकी, उनके नामोल्लेख-पूर्वक, वन्दना की गई है और तीर्थंकरोंके लिये जिन, जिनवर, जिनवरेन्द्र. नरप्रवर, केवली, अनन्ताजन, लोकहित, धर्मतीर्थकर, विधूत-रज-मल, लोकोद्योतकर, अर्हन्त, प्रहीन-जर-मरण, लोकोत्तम, सिद्ध, चन्द्र-निर्मलतर, आदित्याधिकप्रभ और सागरमिव गम्भीर जैसे विशेषणोका प्रयोग किया गया है। और अन्तमें उनसे आरोग्यज्ञान-लाभ (निरावरण अथवा मोहविहीन ज्ञानप्राप्ति), समाधि (धर्म्य-शुक्लध्यानरूप चारित्र), बोधि (सम्यग्दर्शन) और सिद्धि (स्वात्मोपलब्धि) को प्रार्थना की गई है। यह भक्तिपाठ प्रथम पद्यको छोड़ कर शेप सात पद्योके रूपमे थोड़ेसे परिवर्तनो अथवा पाठ-भेदों के साथ, श्वेताम्बर समाजमे भी प्रचलित है और इसे लोगस्स सूत्र' कहते हैं। इस सूत्र में लोगस्स' नामके प्रथम पद्यका छांदसिक रूप शेष पद्योंसे भिन्न हैशेप छहों पद्य जब गाथारूपमे पाये जाते हैं तब यह अनुष्टुभ-जैसे छदमे उपलब्ध होता है, और यह भेद ऐसे छोटे ग्रंथमे बहुत ही खटकता है खासकर उस हालतमे जबकि दिगम्बर सम्प्रदायमे यह अपने गाथारूपमे ही पाया जाता है । यहाँ पाठभेदोंकी दृष्टिसे दोनों सम्प्रदायोंके दो पद्योंको तुलनाके रूपमे रक्खा जाता है : लोयस्सुज्जोययरे धम्म-तित्थंकरे जिणे वंदे । अरहते कित्तिस्से चउवीसं चेव केवलिणे ॥ २॥ -दिगम्बरपाठ लोगस्स उज्जोअगरे धम्मतित्थयरे जिणे । अरहते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली ॥१॥ -श्वेताम्बरपाठ कित्तिय वंदिय महिया एदे लोगोत्तमा जिणा सिद्धा । आरोग्ग-णाप-लाह दितु समाहिं च मे वोर्हि ॥ ७ ॥ -दिगम्बरपाठ कित्तिय वंदिय महिया जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्ग-वोहिलाहं समाहिवरमुत्तमं दितु ॥ ६॥ -श्वेताम्बरपाठ* * दोनों पोका श्वेताम्बरपाठ प• सुखलालजी-द्वारा सम्पादित 'पंचप्रतिक्रमण' ग्रन्यसे लिया गया है।
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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