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________________ क किट्टीकरणद्धा किट्टीकरणद्धाए किट्टीकरणे चर किट्टी करेदि यिमा किट्टी च ठिदिविसेसे किट्टी च पदेसग्गेण लद्धिसा० ५०३ |किहा दिलेस्सर हिया लद्धिमा० २८६ रिहा भमरसवण्णा लद्धिसा० ६३६ |किएहा य गील-काऊक्सायपा० १६४ (११) किएहा याये पुराइ (?) क्सायपा० १६७ (११४ ) क्हिा रयण-सुमेधा क्सायपा० १६६ (११६) विरहेण होड हाणी कसायपा० २२६ (१७६) किए हे तयोदसीए फित्ति जरसें दुसुभा कित्तियपर्यंतसमये कित्तियपहृदिसु तारा कित्तिय रोहिरिणमिगसिरकित्तिय रोहिणिमियसिर कित्तिय चंद्रिय महिया क्मायपा० २३० (१७७) लविसा० २६० द्विसा० ४६१ लद्विमा० ५११ लखिसा० ५७१ भावस ४१ किट्टी दो कहिं पु किट्टी किट्ट पु किट्टीयद्धा चरि किट्टीयो इगिफड्डु - किट्टी वेग किट्टी वेग पढ किeिकुम्ममच्छरुवं किरार - पुरिस महो - + किरार किंपुरिस-महो - + किरणर-किंपुरुसादि य किरणरचउ दस-दसधा किर देवास किरणर पहुचिक किरपदी तर - विधी किरणो जइ धरt जयं किचक्कारणं पु कि हतिया मज्झिमकिएहतिये सुहलेम्मति किहदुमाणे वेगुoिrकिण्हवर सेण मुदा किराह सुमेध सुकडूढा किराहं सिलासमाणे रिहाइति संजम कि हाइतिए चउदस forestry या कि हाइति बधा रिहाइले सरहिया किए हाईति या किरहा गीला काऊ कहाणीला का रिहादिति रिपलेस्सा किरहादितिलेस्सजुदा किरहादिरासिमावलि - प्राकृतपद्यानुक्रमणी तिलोब ० सा० ०५१ तिलो० प० ६- २५ तिलो० प० ६-२७ तिलो० सा० २५६ तिलो० प० ६-१५ तिलो० प० ६-३२ तिलो० प० ६-५८ भ० श्रारा० १५५ | | कितीए वणिज्जइ कित्ती मेत्ती माणस्स कित्ती मेत्ती मारणम्स फिदिक्म्मं जिरणवयरणम्स किदियग्म उवचारिय किदियम्म चिदयमं किदियम्मं पि करंतो कि तम्हि णत्थि मुच्छा किमिणो व वणो भरिद भावस० २२४ गो० जी० १२६ | किमिरागकवलस्स व गो० जी० ५२७ भावति० १०५ श्रास० ति० ५६ गो० जी० ४२३ तिलो० सा० २३६ गो० जी० २६१ किमिरागरत्तसमगो किमिरायच क्कत शुमलकिमिरायचक्कत रणुमलकिमिरायच कमलकद्दकिरिय अभुट्ठाणं किरियातीat सत्यो किरियावद रयमेपचम० १-१७ | किविणेण सचियधरण पचस० ४-१० पच० ४-३५ पचस० ५-१५१ पचस० १-१५३ पचम० ४-३६८ | फिसिए तसघाए गो० जी० ४६२ कि ते वित्तञ्जिा भ० श्रारा० १९०८ | किह ढा जीवो रणो ग त्रा० श्रणु० ५५ कि दा राम्रो रजे तिलो० प० २-२६४ गो० जी० २३६ किह ढा सत्ता कम्मवकिह पुराण काहिि ७५ गो० जी० ५५५ पचस० ११८३ तिलो० प० २-२६५ तिलो० प० ८-३०७ तिलो० प० ३-६० जबृ० प० १०-२० तिलो० प० ७-५३६ वसु० सा० ४३ तिलो० सा० ४३६ तिलो० सा० ४४० तिलो० प० ७-२६ तिलो० सा० ४३२ थोस्सा० ७ तिलो० प० ४-१६१ भ० श्रारा० १३१ कि वि भांति जिउ मन्त्रगउ विभियोगाणं किञ्चिदेवारण तहा मूला०,३८८ अंगप० ३-२२ मूजा० ६४० मूला० ५७६ मूला० ६०८ पवयणसा० ३-२१ भ० श्रारा० १०३६ भ० श्रारा० ५६७ क्सायपा० ७३(२०) कम्मप० ६० गो० जी० २८६ पचस० १-११३ वसु० मा० ३२८ दव्वम० गाय० ३६० छेदपि ० १११ भावस० १६ परम०प० १-५० तिलो० प०४-०३१६ जन्र० प० ८३ श्रारा० ना० ६३ मूला० ४६३ भ० श्रारा० १७५४ भ० श्रारा० १८२७ भ० भाग० १७२८ भ० प्रा० १६१६ •
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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