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________________ ७ पुरातन जैनवाक्य-सूची - कालमणंतं जीवो भावपा० ३४ वागाय" भ. श्रारा० १९४८ कालमणं णीचा- म. श्रारा० १२३० फालेण उवाएगा य भावसं० ३४५ कालमहकालपउमा तिलो. सा. ६६२ / काले विणए उवधा- + भ. शारा० ११३ कालमहकालमाराव- तिलो. सा. ८२१ काले विणए उवहा- + मूला० ३६७ कालमहकालपडू- तिलो० प० ४-७३७ काले विण वहा- + मूला० २६६ कालमहकालपंडू- तिलोप० ४--१३८ । कालेमु जिणवराण तिलो. प०४-१४७० कालम्मि असंपत्ते छेदपि ४ कालो बल्लेस्वावं गो० जी० १५० कालम्मि सुसमणामे तिलो० प० ४-४०१ कालो साप ण हवड समय० ४०० कालम्मि सुसमसुसमे तिलो० ५० ४-३६३ । कालो त्ति य वरदेमो पंचन्थि०१०१ कालयडो दहिवराणे रिट्टम० ५७४ कालोदगोवहीदो तिलो० ५० ५-२६६ फालविकालो लोहिद- तिलो० मा० ३६३ फालोदयणगरीदो तिलो. प०४-०७४५ कालविसेसा णहूँ अंगप० ३-४८ कालोबहिबहुमज्झे निलो० प०४-२७३८ कालविसेसेणव हिद- गो० जी० ४०७ / कालो परमणिरुद्वो जंबू० ५० १३-४ फालसमुहस्स तहा जबू० प० १६-५६ कालो परिणामभवो पंचयि० १०० फालसमुद्दप्पहुदी जवृ० ५०११-४४ कालो रोरवणामो तिलो०प०२-५३ कालसहाववलेणं तिलो. प०४-१६०१ कालो वि य ववएमो गो० जी० ५७६ कालस्स दो वियप्पा तिलो. प०४-२७६ कालो सन्नां जणयदि गो० क० ८७६ फालस्स भिएणभिएणा तिलो० ५० ५-०८३ कालो सहावणियई सम्मइ०३-२३ कालस्स य अणुरुव __भावस०५१३ फावलिय अएणपाणे छेदपि ३३६ कालस्स वट्टणा से पवयणसा०२-४० का वि अपुव्या दीसदि कत्ति० अणु० २१९ कालस्स विकारादो तिलो० प० ४-४८५ काविट्ठ उपरिमते तिलो. प०१-००४ कालस्स विकारादो तिलो० ५० ४-४७६ काविहो वि य इंदो जंय. ५० ५-१०० कालहिं पवणहिं रविसमिहिं पाहु० दो० २१६ कासु समाहि फरउँ को अचऊँ पाहु० दो० १३१ कालं अस्सिय दळां गो० जी० ५७० फासु समाहि करउँ को अंच जोगसा० ३६ कालं काउं कोई __ भावस. ६५८ फिकवाउगिद्धवायस- वसु० सा० १६६ कालं संभावित्ता भ० श्रारा० २७३ किचा अरहंताणं पवयणसा० १-४ कालाइलद्विजुत्ता कत्ति० अणु० २१६ किचा काउस्मग्गं सिदभ. १० कालाइलद्धिणियडा तचसा० १२ किच्चा काउस्सग्गं भावस०४७६ कालाई लहिणं श्रारा० सा० १०७ किच्चा देसपमाणं केत्ति० अणु० ३१७ कालागुरुगंधड्ढा जबू०प०३-१४ किचा परस्स णिंद भ० श्रारा० ३७१ कालागुरुगंधड्ढा जबू० प० ११-६३ | किट्रिगजोगी माणं र लद्विसा० ६३६ कालायरुणहचंदह- वसु० सा० ४३८ किट्टिय-ठिदि आदि महा- क्सायपा०१७८(१२५) काला सामलवण्णा तिलो. प० ६-५६ किटिं सुहमादीदो लद्धिसा० २६६ कालु प्रणाइ प्रणाइ जिउ परम० प० २-१४३ / किट्टी कदम्मि कम्मे कसायपा० २०४(१५१) कालु अणाइ अणाइ जिउ जोगमा० ४ | फिट्टी कदम्मि कम्मे क्सायपा० २०५(१५२) कालु मुणिज्जहि दव्वु तु] परम० प०२-२१ किट्री कदम्मि कम्मे कसायपा० २०६(१५३) कालु लहेविणु जोइया परम० ५० १-८५ किट्टी कदम्मि कम्मे कसायपा० २०७(१५५) कालुस्स-मोह-सरणा- णियमसा० ६६ । किट्टी कदम्मि क्म्मे ___कसायपा० २१३(१६०) काले चउरण उड्ढी गो० जी० ४११ | किट्टी कयवीचारे - कसायपा० कालेण उवाएण य* ___ मूला० २४६ । किट्टीकरणद्धहिया लद्धिसा. ३६६ । । स
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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