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________________ प्रस्तावना १०७ ८६१ वि० सं० ६६६ मे हुई है, जैसा कि 'गोम्मटसार और 'नेमिचंद्र' नामक परिचयलेखमे स्पष्ट किया जा चुका है। दूसरे इन्द्रनन्दी इनसे भी पहले हुए है, जिनका उल्लेख ज्वालामालिनी कल्पके कर्ता इन्द्रनन्दीने अपने गुरु बप्पनन्दीके दादागुरुके रूपमें किया है-अर्थात् वासवनन्दी जिनके शिष्य और बप्पनन्दी प्रशिष्य थे। और इसलिये जिनका समय प्रायः विक्रमकी ९वीं शताब्दीका अन्तिम चरण और १०वीं शताब्दीका प्रथम चरण जान पड़ता है । इन्हें ही यहाँ प्रथम इन्द्रनन्दी समझना चाहिये । तीसरे इन्द्रनन्दी 'श्र तावतार' के कर्ता रूपमे प्रसिद्ध हैं और जिनके विपयमे प नाथूरामजी प्रेमीका यह अनुमान है कि वे गोम्मटसार और मल्लिषेणप्रशस्तिके' इन्द्रनन्दीसे अभिन्न होंगे क्योकि श्र तावतारमे वीरसेन और जिनसेन आचार्य तक ही सिद्धान्त रचनाका उल्लेख है। यदि वे नेमिचन्द्र आचार्यके पीछे हुए होते, तो बहुत संभव है कि गोम्मटसारका भी उल्लेख करते।' चौथे इन्द्रनन्दी नीतिसार अथवा समयभूपणके कर्ता हैं, जो नेमिचन्द्र आचार्य के बाद हुए हैं; क्योंकि उन्होंने नीतिसारके ७०वें श्लोकमें सोमदेवादिके साथ नेमिचन्द्रका भी नामोल्लेख उन आचार्यों में किया है जिनके रचे हुए शास्त्र प्रमाण बतलाए गए हैं। पॉचवें और छठे इन्द्रनन्दो 'संहिता' शास्त्रोंके कर्ता हैं । छठे इन्द्रनन्दीकी संहितापरसे पाँचवें इन्द्रनन्दीका सहिताकारके रूपमें पता चलता है, क्योकि उसके दायभागप्रकरणके अन्तमें पाई जाने वाली गाथाओंमेंसे जिन तीन गाथाओंको प्रेमीजीने अपने 'ग्रन्थपरिचय' मे उद्घृत किया है , उनमे इन्द्रनन्दीकी पूजाविधिके साथ उनकी सहिताका भी उल्लेख है और उसे भी प्रमाण बतलाया है वे गाथाएं इस प्रकार हैं: पुलं पुज्जविहाणे जिणसेणाइचीरसेणगुरुजुत्तइ । पुज्जस्स या य गुणभद्दसूरीहि जह तहुद्दिट्टा ॥ ६३ ॥ वसुणदि-इंदणदि य तह य मुणिएमसंधिगणिनाहं (हिं) । रचिया पुज्जविही या पुव्वक्कमदो विणिद्दिहा ॥ ६४ ॥ गोयम-समंतभद्द य अयलंकसुमाहणंदिमुणिणाहिं । वसुणंदि-इंदणंदिहिं रचिया सा संहिता पमाणा हु ॥६५॥ पहली गाथामें वसुनन्दीके साथ चूंकि एकसंधिमुनिका भी उल्लेख है, जो एकसंधिजिनसंहिताके कर्ता हैं और जिनका समय विक्रमकी १३वीं शताब्दी है. इसलिये इन छठे इन्द्र-नन्दीको एकसंधि भट्टारकमुनिके बादका विद्वान् समझना चाहिये । अब देखना यह है कि इन छहोंमें कौनसे इन्द्रनन्दीकी यह 'छेदपिण्ड' कृति हो सकती है अथवा होनी चाहिये। पं० नाथूरामजी प्रेमीके विचारानुसार प्रथम तीन इन्द्रनन्दी तो इस छेदपिण्डके कर्ता हो नहीं सकते, क्योंकि उन्होने गोम्मटसार तथा मल्लिषेणप्रशस्तिमे उल्लिखित इन्द्रनन्दी और श्र तावतारके कर्ता इन्द्रनन्दीको एक मानकर उनके कर्तृत्व-विपयका निषेध किया है, और इसलिये ज्वालामालिनीकल्पके कर्ता और उनकी गुरुपरम्परामे उल्लिखित प्रथम इन्द्रनन्दीका निपेच स्वतः होजाता है, जिनके विषयका कोई विचार भी प्रस्तुत नहीं किया गया। चौथे इन्द्रनन्दीकी छठे इन्द्रनन्दीके साथ एक होनेकी संभावना व्यक्त की गई है और संहिताके कर्ता छठे इन्द्रनन्दीको ही ग्रंथका कर्ता माना है, जिससे पॉचवे इन्द्रनन्दीका • १ दुरितग्रहनिग्रहाद्भयं यदि भो भूरिनरेन्द्रवन्दितम् । ननु तेन हि भव्यदेहिनो भनत श्रीमुनिमिन्द्रनन्दिनम् ॥ २७ ॥ -श्र०शि० ५४, शक सं० १०५० का उत्कीर्ण
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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