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________________ पुराण और जैन धर्म १९ जैन-मत की उत्पत्ति और आग्नेय पुराण। BIHAR EN कु छ समय पहले वहुत से विद्वानों का ख्याल था कि जैन धर्म कोई स्वतन्त्र धर्म नहीं, वह बौद्ध धर्म से निकला हुश्रा, उसकी शाखा मात्र है । परन्तु. स जव से जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान् प्रोफेसर जैकोबी तथा कितने एक अन्य विद्वानों ने इस विषय की पूरी पूरी शोध की और प्रबल प्रमाणों द्वारा इस बात (जैन धर्म बौद्ध धर्म की • शाग्वा है) को मिथ्या सिद्ध कर, जैन धर्म को बौद्ध धर्म से सर्वथा स्वतन्त्र और बहुत प्राचीन सिद्ध कर दिखाया तब से यह भ्रम बहुत अंश में ता दूर हो चुका है। मगर ऐसे सज्जनों की भी अभी तक कुछ कमी नहीं है जो कि अपनी उसी तान में मस्तान हैं ! श्रोरा के विषय में तो क्या कहना है मगर हमारे, वर्तमान समय के सुप्रसिद्ध हिन्दी मुलखक और सुकषि श्रीमान् बाबू मैथिलीशरण जी गुप ने भी अभी तक इस सन्देह को दूर नहीं किया। आपने अपनी सुप्रख्यात पुस्तक "भारतभारती" में जैन धर्म को बौद्ध धर्म की ही शाखा बतलाया है जैसे:प्रकटित हुई थी बुद्ध विभु केचित्त में जो भावनापर-रूप में अन्यत्र भी प्रकटी वही प्रस्तावना । फैला अहिंसा बुद्धि वर्द्धक जैन पन्थ समाज भी, जिसके विपुल साहित्य की विस्तर्णिता है आज भी॥ [२०८ भारत-भारती]
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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