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________________ -१२ पुराण और जैन धर्म [ पुराण ग्रन्थ धार्मिक हैं ऐतिहासिक नहीं ] पुराणों के विषय में बातचीत होने पर हमारे एक सुयोग्य विद्वान् ने कहा कि- “हम पुराणों को ऐतिहासिक प्रन्थ नहीं मानते। हमारी धार्मिक पुस्तकें हैं। जो लोग पुराणों को ऐतिहासिक ग्रन्थ समझ रहे हैं वे बड़ी भारी गलती पर हैं। उनके द्वारा पुराणों का बड़ा भारी अनादर हा रहा है और प्रतिदिन उनका महत्त्व कम हो रहा है ।" पाठक, इस कथन के मर्म को अच्छी तरह समझ गये होंगे अब हम इस पर कहे तो क्या कहें ? इस हालत में तो भागवन के उक्त लेख पर कुछ विचार करने के लिये प्रवृत्त होना मानो उसकी अवहेलना करना है क्योंकि श्रीमद्भागवत धर्म ग्रन्थ है और धर्मग्रन्थ के उल्लेख के सामने प्रामाणिक से प्रामाणिक इतिहास भी कुछ कीमत नहीं रखता । इतिहास और धर्म में बड़ा अन्तर है क्योंकि इतिहास मनुष्य कृत हैं और इन धार्मिक ग्रन्थों के रचयिता ऋषि हैं। ऋषि बुद्धि के सामने मनुष्य की तीक्ष्ण से तीक्ष्ण बुद्धि भी कुंठिन हो जाती है । वह ऋषि बुद्धि के समक्ष इतनी हैसियत भी नहीं रखती जितनी कि सूर्य के सामने जुगनू के प्रकाश की होती है । सम्भव है इतिहास में कुछ भूल हो, सम्भव है इतिहास के लेखकों ने स्वार्थवश कुछ गोलमाल करदी हो । तथा उपलब्ध ऐतिहासिक प्रभागों को तो अमाणिक कहने में हम स्वतन्त्र हैं और उनमें गलनी भी हो सकती है परन्तु धर्म ग्रन्थों में किसी प्रकार की भूल या बुद्धि का होना सम्भव है, कदापि हो तो हमें अविरार नहीं कि हम उनके विषय में कुछ कह सकें। क्योंकि वे
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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