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________________ पुराण और जैन धर्म जितने तीर्थकर हुए हैं उन्होंने हो समय समय पर जैन धर्म का प्रचार किया और वे ही अर्हन के नाम से कहे जाते हैं इनके सिवाय अर्हन् नाम का कोई अन्य राजा जैन धर्म का प्रवर्त्तक नहीं हुआ । [ जैनों के कथन की जांच ] श्री मदभागवत में जैन धर्म की उत्पत्ति के विषय में जो कुछ लिखा गया है वह महर्षि व्यासदेव का कथन है या अन्य किसो का, इसकी तरफ दृष्टि न देते हुए उक्त लेख को भागवत के रचयिता का ही समझ कर उस पर विचार करना हमारे ख्याल में उचित प्रतीत होता है परन्तु उस पर विचार करने से पहले जैनों के कथन की जांच कर लेनी हमें कुछ अधिक उचित प्रतीत होती है । जैन लोग इस सर्पिणी काल में जैन धर्म के आद्य प्रवर्त्तक ऋपम देव को मानते हैं। भगवान् ऋषभ देव से जैन धर्म का वही सम्बन्ध है जो कि एक सूत्रधार का भजनीय किसी नाटक से । जिस तरह नाटक की शुरूआत प्रथम सूत्रधार करता है, उसी तरह इस वमर्पिणी में जैन धर्म का प्रारम्भ भी प्रथम, ऋषभदेव से हुआ है । भगवान् ऋषभदेव के अनन्तर श्री महावीर स्वामी तक तेईस तीर्थकर धर्म प्रवर्त्तक- अवतार और हुए हैं जिन में से पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी का नाम अधिक प्रसिद्ध है । इन चौबीस तीर्थकरों कोही अन् या अरिहन्त कहते हैं । जैन मन्दिरों में प्रतिष्ठित जोर मूर्ति देखी जाती हैं वे सब इन्हीं तीर्थंकरों की हैं। तात्पर्य यह कि जैन धर्म के प्राय प्रवर्तक ऋषभदेव हैं उन्होंने ही संसार में जैन धर्म का प्रथम प्रचार किया येही जिन अर्हन् या अरिहन्त के नाम में प्रसिद्ध हैं इन के सिवा अन्य कोई अर्हन् नाम का राजा जैन ་
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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