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________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (१८) पूना जिला । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें अहमदनगर, पूर्व में पश्चिममें कोलाबा । ६४ ] अहमदनगर और शोलापुर। दक्षिणमें नीर नदी, इसमें ५३४९ वर्ग मील स्थान है । इसका इतिहास यह है कि इतिहासके पूर्व समयमें यह दंड - कवनका एक भाग था । बहुत प्राचीन समयमें यह व्यापारका मुख्य मार्ग था । बोरघाट और नाना घाटियोंपर होकर कोंकनको माल जाता था । इसके बहुत प्रमाण उन लेखोंमें हैं जो पहाड़में खुदे हुए भाजा, वेडसा, कारली और नानाकी घाटियोंमें हैं । (१) जुन्नार - पुनासे उत्तर पश्चिम ५६ मील । एक प्राचीन स्थान है । सन ई० के १०० वर्ष पहले अन्ध्रराजा राज्य करते. थे । बेड़सा में एक लेखसे मरहठोंका सबसे प्राचीन नाम मिलत है । यहां पश्चिमी चालुक्योंने ५५० से ७६० ई० तक, राष्ट्रकूटोंने ७६० से ९७३ तक फिर पश्चिमी चालुक्योंने ९७३ से १९८४ तक फिर देवगिरिके यादवोंने १३४० तक राज्य किया पीछे मुसमानोंने कबजा कर लिया । (२) वेडसा - ता० मावल, खंडाला स्टेशनसे दक्षिण पश्चिम ५ मील एक ग्राम है - यहां पहली शताह्वीकी गुफाएं हैं । सुपाई पहाडियां ३००० कुट ऊंची हैं मैदानके ऊपर दो खास गुफाएं है एक गुफामें द्वारके ऊपर यह लेख है " नासिकके आनन्द सेठीके पुत्र पुश्यन्कका दान" बड़ी कोठरीके उपर एक कूएंके पास दूसरा लेख है " महाभोजकी कन्या सामजिकाका धार्मिक दान" यह सामज्ञिका अयदेवनककी स्त्री महादेवी महारथिनी थी । यह लेख इसलिये
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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