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________________ हैदराबाद राज्य । [ १५६ आष्टा श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर शाका ५२८ का बना है । कृष्ण वर्णा २ फुट पद्मा० मूर्ति चौथे कालकी है । इनको विघ्नहर पार्श्वनाथ कहते हैं । (३) उखलद - जि० परभणी किगेली स्टेशनमे ४ मील | पूर्णा नदीपर प्राचीन पाषाणका जैन मंदिर प्रतिमा श्री नेमिनाथ बड़े आकार । (४) कचनेर - और ङ्गाबादसे २० मील । विशाल जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है । (५) कुन्थलगिरी - वारसी टाउनसे १६-१७ मील । यह जैन सिद्धक्षेत्र है । पर्वतपर बहुत से जैन मंदिर हैं, सब दि० जैन हैं। श्री देशभूषण कुलभूषण मुनि यहांने मोक्ष पधारे हैं उनके चरण चिन्ह हैं । दिगम्बर जैनोंमें प्रसिद्ध निर्वाणकांडमें इस क्षेत्रका इस तरह वर्णन है गाथा - वंसत्थलवरणियरे पच्छिमभायम्मि कुन्थुगिरिसिहरे । कुल देसभूषणमणी पिया मो तेसिं ॥ १७ ॥ ( प्राकृत निर्वाण कांड ) भाषा वंशस्थल बनके ढिग होय, पश्चिम दिशा कंथगिरि सोय । कुलभूषण देशभूषण नाम, तिनके चरणां करों प्रणाम ॥ १८ ॥ ( निर्वाणकांड भगवतीदास ) (६) कुलपाक - (वनवादा लाइन) अलरे स्टेशनसे ४ मील । प्राचीन जैन मंदिर, प्रतिमा श्री आदिनाथजीकी जिनको माणक स्वामी कहते हैं: ( 9 ) तडकत्व - ( G. I. P. Ry . ) गाणगापुरसे १२ मील ।
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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