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________________ ( ७ ) ज्याबंध निष्पन्दभुजेन यस्य विनिश्वसहक्रपरम्परेण । कारागृहे निर्जितवासवेन लंकेश्वरेणोषितमाप्रसादात् ॥ अर्थात् जिस लंकेश्वरने इन्द्रको भी पराजित किया था वही कार्तवीर्यक कारागारमे मौर्वीसे भुजाओं में बंधा हुआ और अपने अनेक मुखोंसे बड़ी२ सांसें लेता हुआ कार्तवीर्यकी प्रसन्नता होनेके समयतक रहा । ऐतिहासिक काल में इस प्रांतका सबसे प्राचीन संबन्ध मौर्य साम्राज्यसे था । जबलपूरके पास रूपनाथमें जो अशोक सम्राट्का लेख पाया गया है उससे सिद्ध होता है कि आजसे लगभग अढाई हजार वर्ष पूर्व यह प्रांत मौर्य साम्राज्यके अंतर्गत था । चंद्रगुप्त मौर्य और भद्रबाहुस्वामी उज्जैनसे निकलकर इसी प्रांतमेंसे होते हुए दक्षिणको गये होंगे । उस समय यहां जैनधर्मका खूब प्रचार हुआ होगा । विक्रमकी चौथी शताब्दिसे लगाकर आगेके अनेक राजवंशोंके यहां शिलालेख, ताम्रपत्र आदि मिले हैं। डॉ० विन्सेन्ट स्मिथका अनुमान है कि समुद्रगुप्त अपनी दिग्विजयके समय सागर, जबलपूर और छत्तीसगढ़ में से होकर दक्षिणकी ओर बढ़े थे। उस समय चांदा जिलेमें बौद्ध राजाओंका राज्य था । पांचवी छटवीं शताव्दिके दो राजवंश उल्लेखनीय हैं क्योंकि ये दोनों ही राजवंश भारतके इतिहासमें अपने ढंगके विलक्षण ही थे । इनमें से एक परिव्राजक महाराजा कहलाते थे । जिनका राज्य जबलपुरके आसपास था । दूसरे राजर्षि राज्यकुल नरेश थे जिनका राज्य छत्तीसगढ़ में था । इसी समय जबलपूरके पास उच्छकल्पके महाराजा भी राज्य करते थे । इसकी राजधानी आधुनिक उच्छ
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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