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________________ पतितोद्धारक जैनधर्म | ८ ३३ ऐतिहासिक उल्लेख भी ऐसे अनेक मिलते हैं जो उपरोक्त व्याख्याकी पुष्टिमें अकाट्य प्रमाण हैं । पर उकेरे हुये शब्द - हजार वर्ष पहलेके, जैन asnawanens जैनधर्मको पतितोद्धारक पत्थर और नावे बताने वाले ऐतिहासिक सो भी करीब दो प्रमाण धर्मकी उदारताको पुकार पुकार कर कह रहे हैं। मिन्दर महानको तक्षशिलाके २ पास कई दिगम्बर मुनि मिले थे। अपने दूत ओनेसिक्रिटस ( Onesieritus ) को सिकन्दरने उनके पास हाल-चाल लेने भेजा श्रा। यूनानी इतिहासवेत्ता प्लूटार्क (Plutaroh ) कहता है कि दिगम्बर मुनि कल्याणने उससे दिगम्बर होने के लिये कहा था। मुनि कल्याण मिकन्दर के साथ ईरान तक गये थे । अथेन्सनगर ( यनान ) के एक लेख से प्रगट है कि वहा पर एक श्रमणाचार्यका समाधि स्थान था, जो भृगुकच्छ से वहा पहुंचे थे। उन्होंने यूनानियोको अवश्य ही जैन धर्ममें दीक्षित किया प्रतीत होता है। दक्षिण भारत में कुरुम्ब लोग शिकारी और मासमक्षी असभ्य मनुष्य ये, जैनाचार्यने उन्हें जैनी बनाकर सभ्य कर दिया। आखिर वह जैन धर्म कट्टर रक्षक हुये और धर्मरक्षा के भावमे शैवों में उन्होंने कईवार लड़ाईया लड़ीं। यदि इन असभ्योंसे जैनाचार्य घृणा करने तो उनके द्वारा जैन धर्मका उत् कैसे होता ? शक जातिके शासक 3 १ - जर्नल ऑव दी गॅयल ऐगि गटिक सोसायटी, भा० ९१०२३२ स्ट्रंबो, ऐन्शियेन्ट इंडिया पृ० १६७ । २ - इंडियन हिस्टॉरिकल काटेल, मा० २पृ० २९३ । ३-ऑरीजिनल इन्हें बीटेन्ट ऑफ भारतवर्ष पृ० ९३ ।
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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