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________________ -10eomarpiteta IN ....00amanamaina.....anitamustairan पतितोतारक जैनधर्म । " दयादानपरो नित्यं जीवमेव प्ररक्षयेत् , चाण्डालो वा स शूद्रो वा सवै ब्राह्मण उच्यते ।" भावार्थ-"दयादानमें सदा तत्पर हो जीव मात्रकी रक्षा करनेवाला, चाहे वह चाण्डाल हो या शूद, वही जैन संघमें ब्राह्मण कहा गया है।" अर्थात् धर्मवृत्ति संयुक्त चाण्डाल और शूद भी उस समय जैनी होते थे। इसी तरह · पञ्चतन्त्र के मणिभद्र सेठवाले आख्यानमे प्रगट है कि एक नाईक यहा दिगम्बर जैनमुनि आहारके निमित्त पहुंचे थे। संभवतः नाई भोज्य शूद्रोंमें गिने गये है और पूर्व स्थापित शास्त्रीय मतानुसार उनके यहां जैन साधुआंका आहार लेना असङ्गत नहीं प्रतीत होगा। बौद्धोके मज्झिमनिकाय (१-२-४)के 'दु खवखवन्ध-सुत्त में गौतम बुद्ध एक स्थल पर कहने है " निगंठो ' नो लोकमें रुद्र (=भयंकर) खून- रंगे-हाथवाले, ऋर-कर्मा, मनुष्योमें नीच जातिवाले हैं वह निगडोंमें साधु बनते हैं !" 'थेरीगाथा में पति-हत्या. करनेवाली कुन्दलकेशाको जन संघमें आर्यिकाकी दीक्षा लेकर केशलोचन करने लिखा है। 'मिलिन्द एण्ह' में वर्णन है कि पाचसौ योङ्का (यूनानी) भगवान महावीरकी शरणमें पहुंचे थे। इन उल्लेखोसे भी जैन धर्ममे उच्च-नीच मबही प्रकारके मनुष्योको स्थान मिलनेकी बातका ममर्थन होता है। १-पञ्चतत्र ( निर्णयसागर प्रेमावृत्ति १९०२) तंत्र ५ । २-साम्स आव० दी सिष्टर्स, पृ० ६३ । ३-मिलिन्दपणह S. B.E. Vol. XXXV पृ०८।
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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