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________________ houseNIRHUNHIDIHDINIRUDURATIOMURUDILUNHSIL BISHNUAROUDHDHARIDUNIA वेमना। [१८५ जाति-पाति, वेष-भूषा, कुरूप-सुरूपसे कुछ मतलब नहीं ! बड़ी जातिका बड़ा सुरूपवान बड़े मूल्य के वस्त्राभूषण धारण करते हुए भी चित्तशुद्धिके विना शोभा नहीं पासक्ता ! इसके विपरीत एक नीच और कुरूप दरिद्री चित्तशुद्धिके द्वारा उस शोभाको प्राप्त होता है कि देवता भी उसकी प्रशंसा करते हैं । गोदावरीके तटपर जो नंगा साधु इस निखर सत्यका प्रतिघोष कर रहा था वह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण भी था । आइये पाठक, उसके जीवनपर एक दृष्टि डाल लें ! दक्षिण भारतके आन्ध्रदेशमें गन्तुर शहर मशहूर है । इसी नगरसे वीस कोसकी दुरीपर 'कोंडवीड' नामका एक ग्राम था, जो अब नष्टप्राय होगया है । उपरोक्त नंगे साधुका जन्म इसी ग्राममें सन् १४१२ ई० में हुआ था। उसका नाम वेमना था । मद्रास प्रान्तके सभी लोग उसके नाम और कामसे परिचित हैं।। आन्ध्रदेशके शूद लोगोंमें रोड नामकी एक जाति है । वेमना उसी जातिके थे । बचपनमें उन्होंने कोई शिक्षा नहीं पाई थी। वह अपनी जातिके राजाके पुत्र थे। पिताके बाद उनके बड़े भाई राजा हुये और वह भोगविलासमें जीवन विताने लगे। एक वेश्याके प्रेममें वह अंधे होगये। भाई बन्धुओं और मित्रोंका समझाना सब निष्फल गया ! किंतु इतने वेश्यासक्त होनेपर भी वेमना अपनी भावजको श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते रहे। एक वार उस वेश्याने वेमनाकी परीक्षा लेना चाही। यह उनसे बोली "प्यारे, तुम मुझे खूब प्यार करते हो; लेकिन अब तुमसे
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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