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________________ उपल [ ? उपाली !* W तीर्थकर भगवान महावीरके समय में महात्मा गौतम बुद्ध एक अनन्य प्रख्यात् मतप्रवर्तक थे। उन्होंन बौद्धमतकी स्थापना करक जीवमात्रको अपने मध्यमार्गका सन्देश सुनाया था। हर प्रकारके मनुष्य उनकी शरण में पहुंचे थे। उन्होने मा, यह सिद्धात प्राकृत माना था कि जीवमात्र धर्मनी आराधना करके उच्चादको पासक्ता है । म० बुद्ध के शिष्योंमें एक शिष्य था जो जन्म से नीच समझा जाता था। लोग उसे शूद वहते थे; किन्तु उसने अपने में गुणोंकी वृद्धि करके अपनेको लोकमान्य बना लिया था और इसतरह लोगों की इस धारणको गलत सिद्ध कर दिया था कि दुनिया जिनको नीच कहती है वे वस्तुतः नीच नहीं है। वे भी अपना आत्मोन्नति करके उच्च और प्रतिष्ठित पदको पासक्ते है । 1 [ १७७ उम शिष्यका नाम उपाली था और उसका जन्म एक नाईके घरमें हुआ था। राहुल कुम रोको प्रत्रजित करके म० बुद्ध मल्क देश में चारिका करते अनृपियाके म्रवनमें पहुंचे। बहाके अनुरुद्ध अ. दि शाक्यकुमार बौद्ध दीक्षा लेनेको आगे आये उपाली का सेवक था । उनके उतारे हुये वस्त्र को जब उसने उनके कहने " कि 'इतना धन देखकर प्रचंड पर ग्रहण किया तो उसे ध्यान आया शाक्य मुझे जीता न छोड़ेंगे जब मेरे स्वामी यह शाक्यकुमार · * 'बुद्धचर्याके' के माधा | १२
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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