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________________ १७२] पतितोद्धारक जैनधर्म । Inadindiandirajaiinnaiss प्रकार राजाका कर्तव्य प्रभाकी समुचित रक्षा करना, उसके दुखोंको मेंटना और आवश्यक्ताओंको पूरी करना है । यदि राजा अपना कर्तव्यपालन नहीं करता है, तो वह प्रजाका पिता कैसे है ? भाइयो! चिलातीकुमारने अपने कुकर्मोंसे यह सिद्ध कर दिया है कि वह राजा कहलाने योग्य नहीं है । वह कर वसूल करना जानता है, आपकी बहूबेटियोंकी इज्जत लेना जानता है और जानता है आपको मनमाने दुःख देना । क्या आप यह अत्याचार सहन करेंगे ? मां-बहनोंका अपमान आप सहन करेंगे 2 " Minimalis प्रजाने एक स्वर से कहा - 'नहीं, हरगिज नहीं !" युवक ने कहा- 'तो फिर अपने नेताओं का कहना मानो । नगरके अग्रणी पुरुषों और पुरातन राजमंत्रियोंने यह निश्चय कर लिया है कि चिलातिको राजच्युत किया जाय और श्रेणिक बिम्बसारको बुलाकर उन्हें राजा बनाया जाय ।' प्रजा चिल्ला उठी- 'बिल्कुल ठीक ! बुलायो श्रेणिकको ।' युवक - परन्तु श्रेणिक आकर क्या करें ? आप धन और जनसे उनकी सहायता करने को तैयार होइये । शपथ लीजिये कि हम प्राण रहते श्रेणिकका साथ देंगे । प्रजाने यही किया । श्रेणिक बुलाये गये। प्रजाने उनका साथ दिया । चिलति अपने मुक्तभोगी सैनिकोंको लेकर लड़ा जरूर, परन्तु उसका पाप उसके मार्गमें आड़ा आया हुआ था । हठात् उसकी पराजय हुई और वह मैदान छोड़कर एक ओर भाग गया !
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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