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________________ पार्श्वनाथ ૬૨ I कुशल और विदुपी धायें नियुक्त की गई थीं । धायें वाल-संगोपन कार्य मे अनुभवी और बाल-मनो-ज्ञान मे प्रवीण थी । बालक की इन्द्रियों एवं मन का विकास किस प्रकार सहज ही किया जा सक्ता है, यह उन्हें भली भांति ज्ञात था । माता-पिता-संरक्षक या उनके समीप रहने वाले मनुष्य के व्यवहार और भाषण का बालक के मन पर तीव्र प्रभाव पड़ता है । अत. वालक के सामने खूब संयम पूर्वक वर्तना-बोलना चाहिए । यह धायों को सम्यक प्रकार विदित था । वे इसके अनुसार ही आचरण करती थीं धायों ने वाक्क को खेलने के लिये तरह-तरह के खिलौने रखे थे । वे खिलौने आजकल के रबर के खिलौनो, जैसे हानि - कारक नहीं थे । रवर के खिलौनों में एक प्रकार का विष होता है उसका वालक के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है | बालक की प्राकृतिक शक्तियों को विकसित करने के लिए खिलौना एक महत्वपूर्ण वस्तु है । आजकल की अनेक शिक्षा पद्धतियों के अनुसार खिलौनों द्वारा प्रारंभिक शिक्षा दी जाती है । धायों को यह भली भांति विदित था कि किस खिलौने से बालक को अनायाम ही - बिना उस पर किसी प्रकार का दवाव डाले, क्या सुन्दर शिक्षा दी जा सकती है । अतएव वे उन खिलौनों का बुद्धिमत्ता के साथ प्रयोग करके बालक की शक्तियो के विकास के साथ-साथ उसका पर्याप्त मनोरंजन भी करती थीं । खिलौनों के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा वास्तव मे वाचनिक शिक्षा से कहीं अधिक प्रभावजनक और अधिक स्पष्ट तथा स्थायी होती है । आजकल की अनेक अज्ञान माताएँ बालकों को 'हौवा आदि का कल्पित भय बता कर उसे रोने से चुप करने का प्रयत्न करती हैं। उन्हें यह पता नहीं कि वे क्षणिक आराम के लिए अपने
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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