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________________ पार्श्वनाथ ___ मरुभूति के जीव की बीस सागरोपम की आय शनैः शनैः समान हो गई । वह चैत्र कृष्ण चतुर्थी के दिन विशाखा नक्षत्र में इसर्व देवलोक से च्युत हो वामादेवी की कुक्षि मे अवतरित हुआ। नी वामादेवी के गर्भ मे भूतपूर्व देव का आगमन हुआ तब उन्होंने क्रमशः चौदह शुभ स्वप्न देखे-पहले आकाश माने से अता हुआ एक सुन्दर सफेद हाथी उनके मुख से प्रांवष्ट हुथा। इसी प्रकार एक हष्ट पुष्ट अत्यन्त दर्शनीय बल और नव हत्था केसरी सिंह उन्हें दिखाई दिया । चौथे स्वप्न में उन्होंने लक्ष्मी को देखा, फिर पुष्प-माला का चुगल, चन्द्रमा, सूर्य, उजा, कुम्भ, सरोवर, जीर सागर, देव-देवी से युक्त विमान, रत्नों की राशि ओर अन्त मे चोदवे स्वप्न से अग्नि की ज्वाला देखी । इन स्वप्नों को देखकर रानी के हृदय से स्वतः आन्तरिक उल्लास फैल गया। वह आादित होनी हुई ठी ! स्वप्न देखने के पश्चात् उन्होने निन्द्रा नहीं ली। वह अपने शयनागार से उठी और अपने प्राणनाथ महाराजा अश्वसेन के शयनागार में पहुंची । वहां पहुँच कर धीमे और मधुर स्वर से महाराज को जगाया, उनका यथोचित सत्कार क्यिा । महाराज ने प्रेम पूर्वक बैठने के लिए प्रासन दिया। महागज अश्वसेन और वामादेवी के दान्नत्य जीवन का विवरण गृहस्थ जीवन मे अपना एक विशिष्ट आदर्श रखता है। पति-पत्नि मेक्सि प्रकार का मधर संबंध होना चाहिए ? यह बात उनके चरित से विदित होती है । इसके अतिरिक्त निखित विवरण से यह भी प्रतीत होता है कि राजा और रानी की शय्या मन परात न थी किन्तु रत्तके शयनागार भी पथक-पटक
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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