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________________ पार्श्वनाथ अपने उत्तराधिकारी पुत्र के सुयोग्य होने पर पिता अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण हुआ समझ कर पुत्र को कार्य भार सौंप देता और आप निराकुल होकर धर्म की आराधना करता था । तद्नुसार महाराज विद्यु तवेग ने भी युवराज को सब प्रकार सुयोग्य समझ कर, उसके कंधों पर राज्य का समस्त भार डाल कर निश्चिन्त हो दीक्षा-धारण करने का विचार किया। उसने अपना यह विचार अपने मंत्रियों को कह सुनाया। मंत्री-गण महाराज के धार्मिक विचार से सम्मत हुए । तब उसने युवराज को बड़े प्रेम के साथ अपने पास बुलाया और कहा-"प्रिय वत्स, अब मेरी वृद्धावस्था आ गई है। चार दिनों का मेहमान हूँ । न जाने किस दिन यह जीवन-लीला सहसा समाप्त हो जायगी। अतः बचे हुए इस घोड़े से समय मे मै आत्म कल्याण के लिए प्रयत्न करना चाहता हूँ। 'चाराङ्गनेव नपनीतिरनेक रूपा' अर्थात् राजनीति वेश्या की भांति विविध रूपधारिणी है। इसमे छल-बल-कौशल से काम लेना पड़ता है। जो राजा प्रजा के हित का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेता है उसे अपने आपको भूलकर प्रजा-हित को ही प्रधान समझना पड़ता है। इस उत्तरदायित्व के साथ-साथ निराकुलता पूर्वक आत्म-साधना नहीं हो सकती। अतः मैं अव यह उत्तरदायित्व तुम्हें सौंपना चाहता हूँ। तुम वीर हो, विद्वान् हो, साहसी हो, गणवान् और परिश्रमी हो। सब प्रकार योग्य हो गये हो । मेरा बोझ कम करो और प्रजा के पालन-पोषण का, रक्षण और शिक्षण का कार्य तुम्ही सँभालो। मेरे मंत्रिवर्ग तुम्हें हार्दिक सहयोग देंगे। ये अनुभवी हैं, वयोवद्ध हैं और राजनीति मे पारंगत है। इनका सदा सन्मान करना और कदाचित भल करने पर भी इन्हें क्षमा करना। बेटा। यह स्मरण रखना कि
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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