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________________ चौथा जन्म n Anonww चतुर्थ जन्म मोही जीव अपनी गलती हुई आय की ओर दृष्टिनिपात नहीं करते । जीवन-घट मे से प्रतिदिन, प्रतिपल, एक-एक बूद कम होती जाती है पर मोही जीव उसे हर्ष का प्रसंग मानकर उत्सव मनाते है । 'लल्ल आज पांच वर्ष के हो गये है, चलो इनकी वर्ष-गांठ मनाये।' इस प्रकार बड़े आमोद-प्रमोद के साथ वर्षगांठ मनाई जाती है पर लल्ल के काकाजी को यह पता ही नहीं कि लल्ल के जीवन में से एक वर्ष कम हो गया है अतः वर्षगांठ का आनंद मनाये या "वर्प-धाट' का खेद मनाव? इस प्रकार वर्ष-गांठ मनाते-मनाते सहसा काल आ पहुंचता है और जीव को गाठ ले जाता है। अतएच भव्यजीवों को चाहिए कि सदा धर्म की आराधना करे क्षणमात्र भी प्रमाद न करें। देव की सत्तरह सागर की स्थिति भी घटते-घटते अंत मे समाप्त होगई। वह अपने वैक्रिय शरीर को तथा देवलोक के समस्त भोगोपभोगी को छोड़ कर विद्य तगति नामक नपति की महारानी तिलकावती के गर्भ मे उत्पन्न हुआ। महाविदेह क्षेत्र मे सुकच्छ के बीच वैताव्य पर्वत पर तिलकापुरी है। विद्युतगति उस पुरी का शासक था। यह सब विद्याबरों का स्वामी था। सब विद्याधरों पर उसका पूर्ण प्रभाव था। विधुतगति की महारानी तिलकावती सुकुमारी, सुन्दरी, सदाचारिणी और विनम्र थी । मरुभूति का जीव वह देव इसी की कुक्षि मे अवतरित हुआ । नौ मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर उसका जन्म हुआ। उसके समस्त लक्षण महापुरुषों के योग्य देख कर माता-पिता की प्रसन्नता की सीमा न रही। पत्र जन्म के उपलक्ष्य मे महोत्सव मनाया गया, मुक्त हस्त से
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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