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________________ पार्श्वनाथ कमठ मलमति को घर पर न पाकर और अधिक निर्भय होगया था। उसने आगत चोगी की परवा न कर भाई की पत्नी के साथ प्रेमक्रीड़ा करना आरंभ कर दिया । योगी एक अनजान व्यक्ति की भांति एकान्त से बैठा हुआ सब कुछ देखभाल रहा था। उसने जो कुछ देखा उससे अपनी भौजाई का कथन सर्वथा सत्य पाया । वह इस पापलीला को देखकर सिहर उठा। वह वहां से जंगल की ओर मुड़ा और योगी का वेश बदल कर अपने असली वेश से घर लौट आया। वह मन मसोस कर अत्यन्त उदासीनता पूर्वक रहने लगा । अब उसकी आखों के आगे रह रह कर अपने भाई और अपनी पत्नी के इस भ्रष्टाचार का नन्न चित्र नाच रहा था। वह अधिक दिनों तक इस पाप-लीला को न देख सन्ता। उसने एक दिन अपने बड़े भाई के पाप का भंडा फोड़ राजा के सामने कर दिया। मनुष्य के सामने अनेकों बार बड़ी जटिल समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। एक ओर मोह-ममता और दूसरी ओर कर्तव्यप्रेरणा होती है। कभी मोह अपनी ओर मनष्य को आकृष्ट कर के कर्तव्य की और से विमुख बनाना चाहता है और कभी वलवती कर्तव्य-प्रेरणा जागृत होकर ममता को पछाड़ देना चाहती है। मनप्य ऐस प्रसंगों पर बड़ी दुविधा में पड़ जाता है। जो निर्बल होते हैं वे मोह के आधीन हो जाते हैं। जो सबल हृदय के होते हैं वे नोह-समता को लात मार कर कर्तव्य की पुकार सुनते हैं। कर्तव्य के आगे वे अपना और अपने आत्मीय जनों के जणिक स्वार्थ का उत्सर्ग करने से जरा भी कुंठित नहीं होते। धर्म एवं नीति को अपने जणिक त्रार्थों से बडनर मानने वाले राय व्यक्ति इस पथ के सिवा और कौन-सा पथ चन
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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