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________________ पहला जन्म पवित्रता एवं उज्ज्वलता को अक्षुण्ण बनाये रखना चाहते हैं उन्हें नीति और धर्म की मर्यादा से तिल भर भी आगे न बढ़ना चाहिये। क्योंकि सीमा का उल्लंघन होते ही अधःपतन का गहरा गड़हा मिलता है और जो उसमें गिरा उसका उद्धार बड़ी कठिनाई से होता है। कमठ और मरुभूति की पत्लि का श्रात्मा विवेकभ्रष्ट हो गया। उन्हें अकर्तव्य-कर्त्तव्य का भान न रहा । कमठ ने यह न सोचा कि मरुभूति मेरा लघुभ्राता है उसकी पत्नि मेरी पुत्री के समान है । मरुभूति की पत्नि ने भी कमठ को पितृतुल्य न समझा और दोनो पापात्मा भयंकर दुष्कृत्य करने लगे। किन्तु पाप छिपाये छिपता नहीं है । जब दोनों निर्लज्जता पूर्वक अनेक काम चेष्टाएँ करने लगे तो कमठ की पत्निको यह भेद मालूम हो गया। उसके हृदय में ईर्षा की भीपण ज्वाला धधक ऊठी । उसने अपने देवर मरुभूति के समक्ष सारा रहस्य खोल दिया । किन्तु सरल स्वभाव मरुभूति ऐसे घोर पाप की आशंका भी न कर सकता था। वह बोला:-भावज, प्रतीत होता है तुम्हें भ्रम हो गया है। मेरे बड़े भाई कमठ इस प्रकार का दुराचार नहीं कर सकते । मैं तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं कर सकता। भावज वोली-'देवरजी, 'कामातुराणां न भयं न लज्जा' यह कथन बिलकुल सही है। मैं जो कह रही है उसमें असत्य का लेश भी नही है। आप मुझ पर विश्वास न करे, न सही, जांच तो कर देखिए। ___मरुभति शायद सॉसारिक प्रपन्चों को जान लेना चाहता था। उसने इस घटना की परीक्षा करने की ठानी। वह जंगल मे जा, योगी का वेष बना कर अपने घर जहां कमठ रहता था, आया। कमठ ने इसे कोई योगी समझ ठहरा लिया। उस रोज़
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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