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________________ २७४ पाश्वनाथ का कोई मूल्य नही है । केशी - गौतम - संवाद मे श्री गौतम स्वामी ने स्पष्ट कहा है, कि धर्म का साधन ऐच्छिक है, लोक-प्रत्यय के लिए है, संयम निर्वाह के लिए है, और साधुत्व का भाव जागृत रखने के लिए है, वह नाना प्रकार का हो सकता है । जिन शासन का वेष सम्बन्धी यह अभिप्राय सदा से है और रहेगा, क्योंकि यहां अन्यलिंगसिद्ध और गृहस्थलिंगसिद्ध आदि सदा से होते आये है । ● आशा है पाठक उल्लिखित स्पष्टीकरण से दोनों तीर्थों की एकरूपता को भली भांति समझ सकेंगे और किसी प्रकार के भ्रम मे न पड़ेगे ।
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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