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________________ 55 समाज-दर्शन (73) भोजकार, (74) नरसिंहपुरी, (76) क्षेत्र ब्रह्म, (77) वैश्य, (79) छाइया, (80) लठे, (82) सिंधार, (83) राग (75) जम्बूवाल, (78) आइमा, (81) सखा, (84) जानराज। खटौरा निवासी नवलशाह चदोरिया ने विक्रम सवत् 1825 मे 'श्री वर्धमान पुराण' की रचना की22 जिसमे उन्होने भी एक स्थान पर चौरासी जैन जातियाँ गिनाई है। लेकिन इन जातियो तथा पूर्वोक्त जातियो की तुलना करने पर देखते है कि बहुत सी जातियाँ एक लिस्ट मे है लेकिन दूसरी मे नही। फिर भी पल्लीवाल जाति को श्री नवलशाह चदोरिया ने भी नही छोडा है । ___ जिस प्रकार चौरामी जैन जातियो को समय-समय पर विभिन्न विद्वानो ने गिनाया है, उसी प्रकार साढे-बारह प्रकार की जातियो को भी समय-समय पर गिनाया गया है। श्री नवलशाह चदोरिया ने 84 जातियो का तीन श्रेणियो में वर्गीकरण किया है (1) साढे-बारह प्रकार की जातियाँ (2) जैन लगार वाली जातियाँ, तथा (3) अन्य वैश्य जातियाँ। 'श्रीवर्धमान पुगण' मे साढे-बारह प्रकार की जन जातियो की 'पात इक भाँत' अर्थात् एक पक्ति मे एक समान उच्चता वाली कहा गया है। 'परवार-मूर-गोत्रावली' मे भी इन्ही साढे-बारह प्रकार की जातियो को गिनाया गया है। यह जैनो मे परस्पर समता एव भ्रातृभाव की द्योतक हैं। इन साढे-बारह प्रकार की जातियो मे पल्लीवाल जाति को नहीं रखा गया है। पल्लीवाल जाति को जैन-लगार वाली श्रेणी में रखा गया है। जैन-लगार से यहाँ तात्पर्य यह है कि इन जातियो मे जैनत्व का प्रभाव विद्य
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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