SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास [३.६] क्या पल्लीवाल क्षत्रिय थे ? : वर्तमान की अनेक वैश्य जातियां अपने को क्षत्रिय बतलाती हैं। यह सम्भव भी है । जैसा कि प्रथम अध्याय मे लिखा जा चुका है कि बहुत सी वैश्य जातियाँ विभिन्न गणराज्यो से सम्बन्धित थी तथा वे जातियाँ कृषि, पशुपालन तथा वाणिज्य के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करती थी। गणराज्यो के नष्ट हो जाने पर उन्हे शस्त्र छोड देने पडे और केवल कृषि, पशुपालन तथा वाणिज्य ही उनकी जीविका के मुख्य साधन रह गये। कालान्तर मे अहिसा की भावना तीव्र होने पर कृषि कार्य भी छोड दिया, जिसके साथ-साथ गौ-पालन भी चला गया और तब उनकी केवल वाणिज्य वृत्ति ही रह गयी। इतिहास मे प्रख्यात गुप्त वशी मूलत वैश्य हो थे जिनमे समुद्रगुप्त तथा चन्द्र गुप्त जैसे महान सम्राट हुये। हर्षवर्धन भी वैश्य वश का था । ऐमी दशा में यदि बहुत सी जैन जातियाँ अपने को क्षत्रिय वशज कहतो है तो अनुचित नही है। वृत्तियों तो सदा बदलती रहती हैं। पाटण नरेश भीमदेव सोलको (ईम 1022-1062) के प्रसिद्ध सेनापति विमलशाह पोरवाड थे जिन्होने बारह सुल्तानो को हराया तथा प्राबू का प्रसिद्ध आदिनाथ मन्दिर बनवाया था। इसी प्रकार आबू के जगत् प्रसिद्ध जैन मन्दिरो के निर्माता वस्तुपाल तथा तेजपाल (वि स 1288) भी पोरवाड ये जो महाराज वीरधवल बाघेला के मन्त्री और सेनापति थे । महाराणा प्रताप का सेनापति भामाशाह भी वैश्य था। चन्द्रवाड का राजा चन्द्रपाल (वि स 1052 के ग्रामपास) पल्लीवाल जैन था, इसलिए कुछ लोगो का कहना है कि परलीवाल क्षत्रिय मूल के है। उनका कहना है कि पल्लीवाल इक्ष्वाकुवशी हैं। कविवर मनरगलाल जी जो कि पल्लीवाल थे, ने भी अपने को इक्ष्वाकुवशी कहा है।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy