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________________ पल्लीवाल जाति के ऐतिहासिक प्रसग उक्त सब बातो से निम्न निष्कर्ष निकलते हैं - (1) पहली' तामिल भाषा का ईसा पूत्र द्वितीय शताब्दी का बहुप्रचलित शब्द है । ( 2 ) यह शब्द सामान्यत जैन लोगो की विभिन्न अचल सम्पत्ति के सम्बोधनार्थ प्रयोग किया जाता था । (3) तामिल तथा तेलगू भाषा में 'पल्ली का अर्थ छोटा गाँव भी होता है । 37 ऐसा प्रतीत होता है कि पल्लीवाल शब्द की व्युत्पत्ति तामिल भाषा के इसी प्राचीन शब्द 'पल्ली' से ही हुई है । चूंकि छोटे-छोटे गाँव को 'पल्ली कहते है तथा प्राचीन काल मे एक पल्ली में एक ही वर्ण के तथा एक ही धर्म को मानने वाले लोग रहते थे, अत उन सभी पल्लियो ( छोटे-छोटे गाँवो) के वे सब लोग, जो एक ही वर्ण वाले थे तथा जैन धर्मानुयायी थे, पल्लीवाले (यानि कि छोटेछोटे गाँव वाले जैन लोग ) नाम से प्रसिद्ध हो गये । कालान्तर में ये ही लोग पल्लीवाल जाति के कहे जाने लगे । जैसा कि ऊपर कहा गया है कि पल्ली शब्द जैन मठ या जैन मंदिर के लिए भी प्रयुक्त होना था। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल मे पल्लीवालो का जैन मन्दिरो से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । [३५] चन्द्रवाड़ श्रोर राजा चन्द्रपाल 5, 14 15) चद्रवाड या चदवार फिरोजाबाद से चार मील दूर दक्षिण मे यमुना नदी के बाये किनारे पर ( आगरा जिले मे ) अवस्थित है । यह एक ऐतिहासिक नगर रहा है । आज भी इसके चारो मोर खण्डहर दिखाई पड़ते हैं । वि स 1052 में यहाँ का शासक चन्द्रपाल नामक दिगम्बर जैन पल्लीवाल राजा था । कहते है राजा के नाम पर ही इस स्थान का नाम चंद्रवाड या चदवारपड गया। इससे पहले इम स्थान का नाम प्रसाई खेडा था । इस नरेश ने अपने जीवन मे कई प्रतिष्ठा कराई ।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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