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________________ 336 पत्नीवाल जैन जाति का इतिहास द्वितीय शताब्दि का बहुप्रचलित शब्द है । नामिल प्रदेश के मदुरा तथा रामनाड जिले में स्थित अशोक के स्थम्भो में भी 'पल्ली शब्द का प्रयोग किया गया है ।" पल्यपण्डित तथा पल्ल-कीर्ति प्रदि विशेषणो के साथ भी कई नामो का उल्लेख प्राचीन लेखो मे श्राता है । तामिल के अन्य शिलालेखो मे प्राय पल्लीचदम् शब्द मिलता है। श्री पी वी देसाई (जं० सा०इ० पृष्ठ-79) ने लिखा है कि पल्लि शब्द जैन मन्दिर या जैन मठ या जैन सस्था का सूचक है और चदम् 'चौन्दम्' का सरल रूप है । यह संस्कृत के स्वतन्त्र शब्द से बना है । अत पल्लीचदम् का अर्थ होता है - ऐसे जमीन, गाँव वगैरह, जिन पर केवल जैन मन्दिर वगैरह का स्वामित्व हो | 13 पल्लव नरेश विजय मिलता है जो कि शिलालेखो मे और नेकर तेरहवी शताब्दी पल्लीचदम् का सबसे प्राचीन उल्लेख कम्प वर्मा के राज्यकाल के एक शिलालेख मे लगभग नौवी शताब्दी का है । चोल राज्य के मौटे तौर पर लगभग नौवी शताब्दी से तक के पाण्ड्य राजाप्रा के शिलालेखो मे पल्लीचदम् का उल्लेग बहुतायत मे पाया जाता है । जैसे - हिन्दू देवताओ के निमित्त से दिया गया दान देवदान कहा जाता है, चदम् से सम्बद्ध है 113 कुछ वैसा ही भाव पल्ली पल्लीचन्दम् की तरह ही तामिल भाषा का एक शब्द है - 'पल्लीकुट्टम् ।' इसका अर्थ होता है स्कूल । प्राचीन काल मे स्कूल मन्दिर या मठ से सम्बद्ध होते थे तथा जैनाचार्य अपने ज्ञान तथा शैक्षिक प्रवृत्तियो के लिये प्रसिद्ध थे । ग्रत पल्लीकुट्टम् शब्द जैन स्कूलो के लिए ही प्रयुक्त होता था । 'पल्ली' शब्द का प्रन्यार्थ छोटा गाँव की होता है । आज भी दक्षिण के तामिल तथा तेलगू भाषी प्रदेशो मे बहुत से छोटे-छोटे ऐसे गाँव हैं जिनके नाम के पीछे पल्ली शब्द प्राता है ।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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