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________________ पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति एव विकास जातियां एक ऐतिहासिक दृष्टि 17 से प्र चल के एक प्रमुख नगर चन्द्रवाड में राजा जयचन्द गहडवार हो गई, जिसमे राजा जयचन्द, जो कि हाथी के हौदे पर बैठा सैन्य सचालन कर रहा था, सहसा शत्रु का तीर लगने से मर गया । राजा जयचन्द की सेना भाग खडी हुई। मुहम्मद गौरी की सेना ने चन्द्रवाड नगर को खूब लूटा। वह चौदह सौ ऊँटो पर लूट का सामान भरवाकर ले गया । उस समय चौहान तथा पल्लीवाल निवास करते थे । युद्ध तथा उसके बाद लूट-पाट के कारण यहाँ की जनता को बहुत कष्ट उठाने पडे । अधिकतर लोग चन्द्रवाड छोडकर अन्यत्र चले गये। चौहान वशी लोग मारवाड की भोर चले गये 15 चन्द्रवाड में मुख्यतः इस युद्ध के समय कन्नौज का शासन राजा जयचन्द का पुत्र हरिश्चन्द्र देख रहा था । कन्नौज मे चन्द्रवाड के युद्ध का कोई असर नही हुआ कन्नौज राजा हरिश्चन्द्र की देख-रेख मे सुरक्षित था 5 त वहाँ के निवासियो को कही भी विस्थापित होने की प्रावश्यकता नही हुई । कन्नौज मे पल्लीवाल जाति के लोग भी बहुत मख्या में रहते थे । अत वे सब पूर्ण सुरक्षित रहे । कालान्तर में व्यापार के उद्देश्य से ये पल्लीवाल अलीगढ, फिरोजाबाद, चन्द्रवाड तथा कचौडाघाट मे फैल गये । 1 जयचन्द के युद्ध पल्लीवाल जाति चन्द्रवाड मे मुहम्मद गोरी तथा राजा के बाद चन्द्रवाड तथा इसके ग्रासपास के सहित कई अन्य जैन जातियो के लोग प्रार्थिक तगी के शिकार हो गये तथा अन्यत्र जाने को विवश हो गये। इस क्षेत्र के कुछ पल्लीवाल मुरना ( मप्र ) मे बस गये तथा शेष पत्लीवाल हस्तिनापुर के निकट एकत्रित हो गये तथा अन्यत्र नाने का विचार करने लगे । श्री कजोडीलाल राय से प्राप्त प्रार्थना पुस्तक मे लिखा है'हस्तनापुर के पास नगर खडेले से 122 प्रकार की जाति चली ।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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