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________________ (v) सभी पल्लीवाल दिगम्बर जैन धर्मानुयायी थे। इस प्रकार पल्लीवाल जैन समाज का साहित्यिक एवं धार्मिक योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। प्रस्तुत इतिहास में लेखक ने पल्लीवाल जाति में होने वाले विशिष्ट सज्जनो का भी परिचय दिया है जिनमे कितने ही 20 वी शताब्दी में भी है। इस प्रकार प्रस्तुत इतिहास को अतीत का ही न रखकर बर्तमान से भी जोड कर इसे मचिकर बना दिया है । वास्तव में व्यक्तियो का समूह ही समाज है और उनका इतिहास ही समाज का इतिहास है। इतिहास लेखक डा० अनिल कुमार जैन एक युवा विद्वान् है। इतिहास में उनकी पूरी रुचि है। वे स्वय पल्लीवाल जैन है और उन्होने अपनो ही जाति का इतिहास लिख कर एक बहुत बडे अभाव की पूर्ति की है। इतिहास लिखने में उन्होने पर्याप्त श्रम किया है तथा इसे अत्यधिक प्रामाणिक बनाने का प्रयास किया है। मै डा० जैन का एव उनकी कृति दोनो का हृदय से स्वागत करता है। प्राशा है वे अपने लेखन कार्य मे आगे बढ़ते रहेगे और अब तक अचचित एव अज्ञात सामग्री को प्रस्तुत करते रहेगे। अन्त मे मै पल्लोवाल दि० जैन समाज अलवर को एव श्री महाबीर प्रमाद जी जैन, 'सयोजक पत्लीवाल इतिहास समिति' को भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जिन्होने डा. जैन द्वारा लिखित अपने ही समाज का इतिहास प्रकाशित करने का प्रशसनीय कार्य किया है । डा० जैन इतिहास प्रकाशन के कार्य के लिये बहुत प्रयत्नशील थे। इसलिये समाज के सबल से उनके कार्य को भी प्रोत्साहन मिला है। इससे दूसरी जैन जातियो को भी अपने समाज के इतिहास लेखन एव प्रकाशन की प्रेरणा मिलेगी। निर्देशक-महावीर ग्रथ अकादमी डा. कस्तुर चन्द कासलीवाल 867 अमा कलश किमान माग, वरवन नगर टोक फाटक, जयपुर महावीर जयन्ती दि० 31 मार्च 1988
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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